बिरसा मुंडा के कारण ही बना था आदिवासियों के लिए CNT ACT, मिशनरी से इस कारण हुआ था मोहभंग

Republic Day 2025: बिरसा मुंडा के संघर्ष के कारण ही सीएनटी एक्ट 1908 में लागू हुआ. उनके संघर्ष का मुख्य कारण आदिवासियों के खिलाफ हो रहे अत्याचार था.

By Sameer Oraon | January 25, 2025 4:43 PM
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रांची : 26 जनवरी को पूरा देश 76 वां गणतंत्र दिवस मनाएगा. संविधान निर्माण में झारखंड से बोनिफास लकड़ा और जयपाल सिंह मुंडा जैसे आदिवासी नेता भी शामिल थे. ये दोनों झारखंड आंदोलनकारी भी हैं. लेकिन इस आलेख में हम बिरसा मुंडा का जिक्र करेंगे. आप सोच रहे होंगे कि संविधान निर्माण में बिरसा मुंडा का क्या योगदान. लेकिन हम आपको बता दें कि उनके संघर्ष के कारण ही कि उसकी मौत के बाद आदिवासियों के लिए अंग्रेजी हुकूमत को 1908 में सीएनटी एक्ट लाना पड़ा था. ये उनके संघर्ष का ही परिणाम था कि संविधान निर्माण में कई लोगों ने आदिवासी अधिकारों के वकालत की. जिसे लागू भी करना पड़ा. संविधान सभा के सदस्य यदुवंश सहाय ने पेसा कानून बनाने की मांग की थी. इसका जिक्र उनकी बायोग्राफी में लिखी कई किताबों में मिलता है. झारखंड के प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए बनी किताब उड़ान में इस बात का जिक्र किया गया है.

आदिवासियों पर हो रहे अत्याचार के कारण ही छेड़ दिया था उलगुलान

बिरसा मुंडा को अमूमन लोग इसलिए याद करते हैं क्योंकि उन्होंने अंग्रजों से लड़ाईयां लड़ी. लेकिन उनका मुख्य संघर्ष तो अंग्रेज सरकार का आदिवासियों पर हो रहे अत्याचार के खिलाफ था. कई किताबों में इस बात का जिक्र है कि उस वक्त आदिवासियों को अपनी जमीन पर खेती करने के लिए अंग्रेजों को लगान देना पड़ता था. उन्हें कोई भी संस्कृतिक कार्यक्रम करने के लिए भी अंग्रेजों से न सिर्फ अनुमति लेनी पड़ती थी बल्कि इसके आयोजन में हो रहे खर्च को भी अंग्रेजी हुकूमत को देना पड़ता था. उन्हें लगातार जंगल व जमीन से बेदखल किया जा रहा था. जबकि छोटानागपुर क्षेत्र के जंगलों पर आदिकाल से आदिवासियों का ही एकाधिकार था. इसी अत्याचार को देखते हुए बिरसा मुंडा ने अग्रेज के खिलाफ उलगुलान छेड़ दिया था.

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कैसे हुआ मिशनरी से मोह भंग

कई किताबों में इस बात जिक्र है कि बिरसा मुंडा को शुरुआत में इसाई धर्म अपनाना पड़ा था. उनके बचपन का नाम दाउद था. लेकिन एक उनके स्कूल में एक शिक्षक ने मुंडा समुदाय के बार में कुछ आपत्तिजनक टिप्पणी की. इसका बिरसा मुंडा ने जोरदार विरोध किया. उनका मानना था कि कोई भी धर्म किसी भी समुदाय को अपमानित करने का अधिकार नहीं देता. उन्होंने पढ़ाई छोड़ दी. इसके बाद वे घर आ गये. लेकिन उन्होंने कुछ दिन बाद घर भी छोड़ दिया. वह जंगल चले आए. प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कराने वाले शिक्षकों का कहना है कि उन्हें मुंडा समाज के सबसे बड़े देवता सिंगबोंगा का दर्शन प्राप्त हुआ था. जिसके बाद उन्होंने न सिर्फ अंग्रेजों के खिलाफ जंग छेड़ दिया बल्कि एक बिरसाइत धर्म की शुरुआत की. इस धर्म को मानने वाले आज भी दक्षिणी छोटामनागपुर इलाके में रहते हैं. उन्होंने आदिवासियों से मांस और मदिरा छोड़ने की अपील की. उस वक्त तक बिरसा मुंडा का प्रभाव इतना ज्यादा था कि आदिवासी समाज के लोग अंग्रेजों के खिलाफ गोलबंद होने लग गये थे. माना तो ये भी जाता है कि वे गंभीर से गंभीर बीमारी को जड़ से ठीक कर देते थे. इसी वजह से लोग उन्हें धरती आबा की उपाधी दी. बिरसा मुंडा का खौफ इतना था कि अंग्रेजों ने उसे पकड़ने के लिए 500 रुपये का इनाम भी रख दिया था.

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