बाघों की घर वापसी की तैयारी : पलामू टाइगर रिजर्व फिर बनेगा गर्जना का गवाह

बाघों की घर वापसी की तैयारी : पलामू टाइगर रिजर्व फिर बनेगा गर्जना का गवाह

By SHAILESH AMBASHTHA | July 28, 2025 10:38 PM
an image

बेतला़ पलामू टाइगर रिजर्व (पीटीआर) का इतिहास बाघों की मौजूदगी के लिए जाना जाता है. कभी यहां के कोर और बफर क्षेत्रों में बाघों की लगातार मौजूदगी देखी जाती थी. लेकिन मानव हस्तक्षेप, नक्सली गतिविधियों और अन्य अड़चनों के कारण बाघ इस इलाके से दूर हो गये. विशेषज्ञों का मानना है कि बाघ पलायन कर गये हैं, खत्म नहीं हुए. हाल ही में पलामू टाइगर रिजर्व का बाघ भटक कर रांची के सिल्ली तक चला गया था़ जिसे रेस्क्यू कर पुन: पलामू टाइगर रिजर्व में छोड़ दिया गया है़ जहां पर वह पूरी तरह अनुकुल परिस्थियों में विचरण कर रहा है़ विभागीय पदाधिकारी इसकी मॉनिटरिंग कर रहे है़ं अब वन विभाग की ओर से पलामू को फिर से बाघों के अनुकूल बनाने की कोशिश तेज कर दी गयी है. पीटीआर के अंतर्गत आने वाले जयगीर गांव के सभी परिवारों को पुनर्वासित कर दिया गया है. अब वहां सिर्फ जंगल है. अन्य गांवों के पुनर्वास की प्रक्रिया जारी है. रेलवे ट्रैक को डाइवर्ट करने, सड़कों के चौड़ीकरण पर रोक और डूब क्षेत्र के गांवों को हटाने की कवायद चल रही है. मंडल डैम निर्माण प्रक्रिया भी जारी है. नक्सलियों से मुक्त हुए बूढ़ा पहाड़ क्षेत्र में अब शांति का माहौल है. बाघों के लिए सॉफ्ट रिलीज केंद्र बनाये गये हैं, जहां बेतला से लाये गये हिरणों को छोड़ा जा रहा है. कोर एरिया को पूरी तरह मानव मुक्त करने का अभियान तेज हो चुका है. इससे उम्मीद की जा रही है कि आने वाले समय में पीटीआर का पुराना जंगल राज लौटेगा और बाघ प्राकृतिक रूप से वापस आयेंगे. अतिथि की तरह आते हैं और चले जाते हैं : हाल ही में पीटीआर का एक बाघ भटककर रांची के सिल्ली क्षेत्र तक चला गया था. लेकिन वहां से लौटने के बाद वह पुनः पलामू के जंगलों में स्वतंत्र रूप से विचरण कर रहा है. वन अधिकारियों का कहना है कि वर्तमान में प्रतिवर्ष छह से सात बाघ रिजर्व के बाहर से आते हैं, पर ठहरने के लिए अनुकूल माहौल न मिलने के कारण वापस लौट जाते हैं. पुलिस नक्सली मुठभेड़ में बंदूक की आवाज ने बाघों को कर दिया दूर : बाघों की अनुपस्थिति का प्रमुख कारण 1990 से 2014 तक फैली नक्सली गतिविधियां रहीं. गोलियों की तड़तड़ाहट ने बाघों को डरा दिया और उन्होंने क्षेत्र छोड़ दिया. 2018 तक बाघों की संख्या शून्य तक पहुंच गयी थी. इसके बाद केंद्र व राज्य सरकार के सहयोग से बाघ संरक्षण के कार्य आरंभ हुए. भारत में 1932 में पहली बार बाघों की गिनती यहीं की गयी थी. उस समय बाघों की इतनी अधिक संख्या थी कि अंग्रेज उन्हें शिकार के लिए खतरनाक मानते थे और मारने पर इनाम दिया जाता था. जल्द ही यहां बाघों की संख्या बढ़ जायेगी : डिप्टी डायरेक्टर : पीटीआर डिप्टी डायरेक्टर कुमार आशीष ने कहा कि पलामू टाइगर रिजर्व के पुराना गौरव को लौटाने की दिशा में काम हो रहा है. बहुत जल्द ही यहां बाघों की संख्या बढ़ जायेगी. स्थानीय लोगों का सहयोग भी जरूरी है. जयगीर गांव के पुनर्वासन से एक उम्मीद जगी है. जैसे ही पलामू टाइगर रिजर्व का बेहतर माहौल बनेगा प्राकृतिक रूप से यहां बाघों का ठहराव होगा बल्कि बाघों की संख्या बहुत अधिक बढ़ जायेगी.

संबंधित खबर और खबरें

यहां लोहरदगा न्यूज़ (Lohardaga News) , लोहरदगा हिंदी समाचार (Lohardaga News in Hindi), ताज़ा लोहरदगा समाचार (Latest Lohardaga Samachar), लोहरदगा पॉलिटिक्स न्यूज़ (Lohardaga Politics News), लोहरदगा एजुकेशन न्यूज़ (Lohardaga Education News), लोहरदगा मौसम न्यूज़ (Lohardaga Weather News) और लोहरदगा क्षेत्र की हर छोटी और बड़ी खबर पढ़े सिर्फ प्रभात खबर पर .

होम E-Paper News Snaps News reels
Exit mobile version