भारत के PVTGs पर दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन, समावेशी विकास की चुनौतियों पर की गई चर्चा

Pakur: पाकुड़ में भारत के विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूह (PVTGs) पर दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया. इस दौरान समुदाय के समावेशी विकास को लेकर आ रही चुनौतियों और उसमें मौजूद संभावनाओं पर गहन चर्चा की गई.

By Rupali Das | May 3, 2025 11:45 AM
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Pakur: पाकुड़ में के. के. एम. कॉलेज, पाकुड़ (एसकेएम विश्वविद्यालय, दुमका) और दिल्ली विश्वविद्यालय के डॉ. भीमराव अंबेडकर कॉलेज के संयुक्त तत्वावधान में एक दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी आयोजित किया गया. इस दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी में “भारत के विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूह (PVTGs): समावेशी विकास की चुनौतियाँ और संभावनाएँ” विषय पर गहन और गंभीर चर्चा की गई. मंगलावर को इस आयोजन का सफल समापन हुआ. इस आयोजन की सफलता में नई दिल्ली के इंडियन काउंसिल ऑफ सोशल साइंस रिसर्च (ICSSR) का भी सहयोग रहा, जिसने कार्यक्रम में वित्तीय सहयोग किया.

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PVTGs को होने वाली परेशानियों पर रखे विचार

29 और 30 अप्रैल को आयोजित संगोष्ठी का उद्देश्य भारत के PVTGs यानी विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूह की सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक और राजनीतिक स्थितियों पर समावेशी संवाद और नीतिगत चिंतन को प्रोत्साहित करना था. कार्यक्रम के उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता एसकेएम विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो बिमल प्रसाद सिंह ने की. इस दौरान पद्मश्री चामी मुर्मू ने मुख्य वक्ता के रूप में जमीनी स्तर पर इन समुदायों को होने वाली चुनौतियों और उनके पारंपरिक अधिकारों की सुरक्षा की आवश्यकता पर अपने विचार रखे. संगोष्ठी में के. के. एम. कॉलेज के प्राचार्य और कार्यक्रम संयोजक डॉ युगल झा ने संगोष्ठी की थीम, उद्देश्य और विभिन्न सत्रों की रूपरेखा प्रस्तुत की.

शोधपत्र प्रस्तुत किये गये

इस दौरान प्रो बिष्णु मोहन दाश, प्रो सुजीत कुमार, प्रो चिंतरंजन सुबूधी और कुमार सत्यम जैसे विद्वानों ने आदिवासी नीतियों पर अपने विचार प्रस्तुत कर संगोष्ठी को नई दिशा दी. इस अवसर पर देशभर के प्रतिष्ठित संस्थानों जैसे दिल्ली विश्वविद्यालय, नेशनल लॉ स्कूल (बेंगलुरु), इंदिरा गांधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय (अमरकंटक), महात्मा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय (प्रयागराज) और विश्वभारती (शांतिनिकेतन) से आये 50 से अधिक प्राध्यापकों, शोधकर्ताओं और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने अपने शोधपत्र प्रस्तुत किये.

संथाली संस्कृति की जीवंत झलक दिखाई

वहीं, सांस्कृतिक संध्या में स्थानीय जनजातीय लोक नृत्य और गीतों की प्रस्तुतियों ने प्रतिभागियों को संथाली संस्कृति की जीवंत झलक दिखाई. इससे संगोष्ठी को एक सांस्कृतिक आयाम मिला. यह आयोजन न केवल एक अकादमिक विमर्श का मंच बना. बल्कि PVTGs के अधिकारों, विकास और सशक्तिकरण के लिए नीति-निर्धारण की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल के रूप में भी रेखांकित किया गया. आयोजकों ने भविष्य में भी ऐसे संवादात्मक मंचों को जारी रखने की प्रतिबद्धता जताई.

संगोष्ठी की संक्षिप्त रिपोर्ट की गई पेश

इस दौरान प्रो. बिष्णु मोहन दाश ने संगोष्ठी की संक्षिप्त रिपोर्ट प्रस्तुत की, जबकि समन्वयक कुमार सत्यम ने धन्यवाद ज्ञापन दिया. कार्यक्रम में डॉ मनोहर कुमार, डॉ शकुंतला मुंडा, डॉ स्वीटी मरांडी, डॉ अंशु, डॉ जोयना, डॉ सुशीला हंसदा, डॉ सोमी अली और डॉ अविनाश तिवारी ने विभिन्न सत्रों का संचालन काफी प्रभावशाली ढंग से किया. इस कार्यक्रम के आयोजन में कॉलेज के कर्मचारियों का योगदान भी उल्लेखनीय रहा. इस संगोष्ठी में प्रो सदानंद प्रसाद, प्रो पामेला सिंगला, डॉ जैनेंद्र यादव और प्रमोदिनी हेम्ब्रम सहित कई विशिष्ट अतिथियों ने भाग लिया. कार्यक्रम के समापन सत्र में प्रो सदानंद प्रसाद, डॉ युगल झा और पूर्व प्राचार्य डॉ शिवप्रसाद लोहरा उपस्थित रहे.

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