
पाकुड़िया के चिरूडीह और लागडुम की प्रेरक कहानी, श्रमदान कर बनायी चार किमी सड़क प्रतिनिधि, पाकुड़िया. पाकुड़िया प्रखंड के सुदूर आदिवासी बहुल गांव चिरूडीह और लागडुम के ग्रामीण लंबे समय से इसी हकीकत से जूझ रहे थे. उन्होंने प्रशासन और अपने चुने हुए प्रतिनिधियों से गुहार लगाई, बार-बार आवेदन दिए, मिन्नतें कीं, लेकिन हर बार निराशा ही हाथ लगी. उनकी आवाज अनसुनी रह गयी, और सड़क की हालत बद से बदतर होती गयी. आखिरकार, जब सरकारी तंत्र की उदासीनता ने उनकी सारी उम्मीदें तोड़ दीं, तो इन मेहनतकश ग्रामीणों ने खुद अपनी तकदीर बदलने का फैसला किया. रविवार को, चिरूडीह और लागडुम के दर्जनों ग्रामीण अपने घरों से फावड़ा, कुदाल और ठेला लेकर सड़क पर उतर आये. ये कोई विरोध प्रदर्शन नहीं था, बल्कि आत्मनिर्भरता और सामुदायिक एकजुटता का एक सशक्त उदाहरण था. लुकास मुर्मू, रमेश मुर्मू, मिकाइल सोरेन, मुंशीराम हेंब्रम जैसे ग्रामीणों ने बताया कि कई बार प्रखंड से लेकर जिला तक सड़क के जर्जर होने की जानकारी देने के बावजूद कोई समाधान नहीं निकला. मजबूरन, गांव वालों ने एक बैठक की और खुद ही सड़क की मरम्मत करने का फैसला लिया. मानसून के दस्तक देते ही, इन 4 किलोमीटर की सड़कों पर चलना या वाहन से गुजरना लगभग नामुमकिन हो गया था. बारिश में बिगड़े न हालात, कुदाल-फावड़ा के साथ उतरे ग्रामीण इस कठिन परिस्थिति का सामना करने के लिए, ग्रामीणों ने श्रमदान के माध्यम से चिप्स डस्ट, मिट्टी, पत्थर और मोरम भरकर सड़क को आवागमन योग्य बनाया. सोनकर सोरेन, निवास मुर्मू, मुंशी हेंब्रम सहित गांव के दर्जनों लोगों ने स्वेच्छा से इस नेक कार्य में अपना योगदान दिया. ग्रामीणों की इस प्रशंसनीय पहल ने न केवल उनकी अपनी समस्या का समाधान किया, बल्कि आसपास के गांवों में भी प्रेरणा की एक लहर दौड़ा दी है. यह कहानी हमें सिखाती है कि जब व्यवस्था जवाब न दे, तो सामुदायिक शक्ति किसी भी बाधा को पार कर सकती है. अब ग्रामीण सरकार के पथ निर्माण विभाग से इस जर्जर सड़क के अविलंब सुदृढ़ीकरण एवं नवीकरण की मांग कर रहे हैं, ताकि चिरूडीह जैसे सुदूर ग्रामीण इलाकों के लोगों को मुख्यालय, अस्पताल, स्कूल और बस स्टैंड तक आने-जाने में वास्तविक सहूलियत मिल सके.
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