दो साल बाद भी बन कर नहीं आया गैरेज भेजा गया पंप सेट

दो साल बाद भी बन कर नहीं आया गैरेज भेजा गया पंप सेट

By SAROJ TIWARY | May 7, 2025 11:50 PM
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भुरकुंडा. खराबी के बाद गैरेज भेजा गया पंप सेट व सबमर्सिबल दो साल बाद भी बन कर नहीं आया है. पंप सेट व सबमर्सिबल वापस क्यों नहीं आया, इसका विभागीय कर्मियों के पास कोई जवाब नहीं है. यह मामला सीसीएल भुरकुंडा के जलापूर्ति विभाग से जुड़ा है. करीब 12 साल पहले सीसीएल प्रबंधन ने करोड़ों रुपये खर्च कर भुरकुंडा कोयलांचल में जलापूर्ति व्यवस्था को चुस्त-दुरुस्त करने के लिए ओल्ड वर्कशॉप पानी टंकी परिसर में नया मोटर, पंप सेट, व सबमर्सिबल लगाया था. पूरे इलाके में नयी पाइप लाइन बिछायी गयी थी. जब व्यवस्था चालू हुई, तो लोगों को भरपूर पानी मिलने लगा. पानी का प्रेशर भी जोरदार था, लेकिन एक-दो वर्षों के बाद ही इस व्यवस्था में खराबी आनी शुरू हो गयी. कुछ तकनीकी वजहों से पंप सेट का एलाइनमेंट आउट हो गया. इससे पंप सेट में टूट-फूट होनी शुरू हो गयी. पंप सेट को गैरेज भेजकर बनाने व वापस जलापूर्ति व्यवस्था में लगाने का सिलसिला चलता रहा. जलापूर्ति कमोबेश ठीकठाक रही. करीब दो साल जब पंप सेट में खराबी आयी, तो बनने के लिए एक बार फिर से गैरेज भेज दिया गया. यह पंप सेट आज तक वापस बन कर नहीं आया है. कर्मियों से पूछने पर कोई स्पष्ट जानकारी नहीं मिली. बताया गया कि यह पंप सेट सर्वे ऑफ हो गया था, इसलिए वह अभी भी किसी गैरेज में ही पड़ा है. बनने की स्थिति में नहीं है. यही हाल पानी टंकी में लगे सबमर्सिबल का भी है. यह भी खराब होने के बाद वापस बनकर नहीं आया. प्रबंधन के पास नहीं है वैकल्पिक उपाय : भुरकुंडा व रिवर साइड क्षेत्र में जिस पोखरिया से पानी की सप्लाई होती है, वहां पहले दो पंप सेट थे. एक पंप सेट लंबे वक्त से खराब है. दूसरे पंप सेट से जलापूर्ति होती है. इसके ब्रेकडाउन होने पर कई दिनों तक सप्लाई बाधित रहती है. पानी टंकी परिसर में भी दो की जगह केवल एक पंप सेट वर्किंग है. लंबे समय से यहां जलापूर्ति की कोई वैकल्पिक सुविधा नहीं है. खराबी के बाद पानी के लिए लोगों के बीच हाहाकार मच जाता है. इन कॉलोनियों में होती है जलापूर्ति : भुरकुंडा परियोजना सिविल विभाग द्वारा भुरकुंडा क्षेत्र के जवाहर नगर, पटेल नगर, भुरकुंडा, रिवर साइड क्षेत्र के चीफ हाउस, दोतल्ला व इमली गाछ पंचायत में जलापूर्ति की जाती है. सभी पंचायत की कॉलोनियों में सप्ताह में दो-तीन बार करीब एक-एक घंटे की जलापूर्ति रोटेशन सिस्टम के आधार पर होती है.

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