सरायकेला में चैत्र महोत्सव का रंगारंग शुभारंभ शुक्रवार को स्थानीय राजकीय छऊ कला केंद्र परिसर में हुआ. कार्यक्रम का उद्घाटन झारखंड सरकार के परिवहन मंत्री दीपक बिरुआ ने किया. मौके पर उन्होंने कहा कि छऊ केवल सरायकेला की नहीं, पूरे झारखंड की सांस्कृतिक धरोहर है, जिसे यूनेस्को ने विश्व की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत के रूप में मान्यता दी है. पूरी दुनिया आज छऊ को अपना रही है, यह हम सभी के लिए गर्व का विषय है. उन्होंने कहा कि सरकार छऊ नृत्य के संरक्षण और विकास के लिए प्रतिबद्ध है.
छऊ की नींव सरायकेला से : जोबा माझी
छोटे अखाड़े से निकल कर अंतरराष्ट्रीय पहचान बनायी : कालीचरण मुंडा
खूंटी सांसद कालीचरण मुंडा ने कहा कि छऊ ऐसी कला है जिसमें प्राचीनकाल में राजा और प्रजा एक साथ नृत्य करते थे. छऊ एक ऐसी परंपरा है जिसने छोटे अखाड़े से निकलकर अंतरराष्ट्रीय पहचान बनायी है. इस कला को गांव-गांव तक पहुंचाने की जरूरत है.
छऊ को वैश्विक पहचान दिलाने में गुरुओं का योगदान : दशरथ गागराई
मंगलाचरण से हुआ कार्यक्रम का शुभारंभ
कार्यक्रम की शुरुआत छऊ कलाकारों द्वारा मंगलाचरण से हुई. इसके बाद सरायकेला, मानभूम और खरसावां शैली के द्वितीय स्थान प्राप्त नृत्य दलों ने प्रस्तुति दी. अन्य आकर्षक प्रस्तुतियों में ओडिशा के प्रतीम मुखर्जी द्वारा भरतनाट्यम, विश्वदेव महतो का नटुआ नृत्य, नवीन कला केंद्र का कथक, युधिष्ठिर सरदार के दल द्वारा फिरकाल नृत्य, मनु साहू द्वारा राजस्थानी कालबेलिया, लखन गुड़िया द्वारा मुंडारी नृत्य, हिमानी देवी कर द्वारा बिहू और ईचागढ़ के चोगा दल द्वारा पाइका नृत्य प्रमुख रहे. ओडिशा के गंजाम से आये कलाकारों ने सिंह नृत्य, संबलपुरी और ट्राइबल ओडिसी की प्रस्तुति देकर दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया.
कलाकारों को किया गया सम्मानित
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