सिंहभूमि ओड़िया साहित्य को सशक्त बना रहे हैं व्यंग कवि ज्योतिलाल साहू, कविता संग्रह ‘छिन्नमस्ता बटोर चुकी हैं सुर्खियां

Saraikela News: व्यंग कवि ज्योतिलाल साहू सिंहभूमि ओड़िया साहित्य को सशक्त बना रहे हैं. उन्होंने बचपन से ही ओड़िया भाषा में कविता लिखना शुरू किया था. उनकी कविता संग्रह ‘छिन्नमस्ता’ खूब सुर्खियां बटोरी थी.

By Sameer Oraon | February 21, 2025 7:37 PM
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सरायकेला, शचिंद्र कुमार दाश : सरायकेला जिले के कंसारी टोला के व्यंग कवि ज्योतिलाल साहू सिंहभूमि ओड़िया साहित्य को पिछले 35 वर्षों से लगातार सशक्त बनाने में जुटे हुए हैं. उन्होंने बताया कि अपने मातृभाषा स्थानीय सिंहभूमि भाषा में कविता लिखने का उन्हें बचपन से ही शौक था. अपने इस रूचि को आगे बढ़ाते हुए उन्होंने युवावस्था से ही सिंहभूम ओड़िया के साथ-साथ ओड़िया भाषा में कविता लिखना शुरू किया. उन्होंने बताया कि कविता के जरिये वह अपनी मातृभाषा (सिंहभूमी ओडिया) को सशक्त करने का कार्य कर रहे हैं. साथ ही लोगों को अपनी मातृभाषा में पढाई करने, आपस में वार्तालाप करने के लिए भी प्रेरित कर रहे हैं. वे मातृभाषा ओड़िया के संरक्षण के लिए भी लगातार कार्यरत हैं.

खूब सूर्खियां बटोरी है ज्योतिलाल साहू की ओड़िया कविता संग्रह ‘छिन्नमस्ता’

बताते चलें ओड़िया कवि ज्योतिलाल साहू की कविता संग्रह ‘छिन्नमस्ता’ झारखंड, ओड़िशा समेत कई राज्यों में सुर्खियां बटोर चुकी है. जिसमें सिंहभूम में ओड़िया भाषा की स्थिति, ओड़िया भाषा की उपेक्षा, स्कूलों में शिक्षकों के अभाव के साथ-साथ ओड़िशा से अलग होने के बाद सरायकेला खरसावां की स्थिति का इसमें समावेश है.

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झारखंड से लेकर ओड़िशा तक कई मंचो पर हुए सम्मानित

ज्योतिलाल साहू ने बताया कि मातृभाषा के संरक्षण व प्रचार प्रसार के लिए अब तक उन्हें कई पुरस्कार भी मिल चुके हैं. उन्हें वर्ष 2002 में लोक समिति झारखंड ने झारखंड रत्न अवॉर्ड से सम्मानित किया था. उस समय राज्य के तत्कालीन कल्याण मंत्री अजुर्न मुंड़ा ने उन्हें यह सम्मान दिया था. इसके बाद ओड़िशा विधानसभा में वर्ष 2001 में ओड़िशा विधानसभाध्यक्ष द्वारा सम्मानित किया गया था.

मातृभाषा की शक्ति को पहचान उसे उचित सम्मान देना आवश्यक : ज्योतिलाल साहू

व्यंग कवि ज्योतिलाल साहू का कहना हैं कि वास्तव में मातृभाषा मात्र अभिव्यक्ति या संचार का ही माध्यम नहीं बल्कि हमारी संस्कृति और संस्कारों की संवाहिका भी है. मातृभाषा में ही व्यक्ति ज्ञान को उसके आदर्श रूप में आत्मसात कर पाता है. भाषा से ही सभ्यता और संस्कृति पुष्पित-पल्लवित और सुवासित होती है. यह विडंबना ही है कि स्वतंत्रता के सात दशक बाद भी हम अपनी भाषा को उसके यथोचित स्तर तक नहीं पहुंचा पाये हैं. यदि हमें विश्व गुरु के पद पर पुन: प्रतिष्ठित होना है तो यह अपनी मातृभाषा को समुचित सम्मान दिये बिना संभव नहीं. ऐसे में आज आवश्यकता है कि हम अपनी मातृभाषा को व्यापक रूप से व्यवहार में लाएं. मातृभाषा की शक्ति को पहचानें. एक सूत्र में बांधना है तो हमें अपनी मातृभाषा को उचित सम्मान देना होगा. अपनी मातृभाषा पर हमें गर्व की अनुभूति करनी होगी. मातृभाषा से ही हमारे राष्ट्र और समाज के उत्थान का मार्ग प्रशस्त होगा.

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