जनजातीय मामलों के केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा ने कहा कि सिकल सेल एनीमिया (SCA)को चुनौती के रूप में लेते हुए इस बीमारी से निजात पाने के लिए केंद्र सरकार कृतसंकल्पित है. यह बीमारी जनजाति समूहों में व्याप्त है और हर 86 बच्चों में से एक बच्चे में यह बीमारी पायी जाती है. इसके निराकरण के लिए जन-जागरूकता और इलाज आवश्यक है.
उन्हाेंने कहा कि जनजातीय कार्य मंत्रालय ने इस बीमारी की गंभीरता को समझा है. इसके सार्थक हल के लिए कई महत्वपूर्ण निर्णय लिए हैं. राज्यों को आइसीएमआर (ICMR) के सहयोग से जनजातीय छात्रों की स्क्रीनिंग के लिए राशि उपलब्ध करायी गयी है. जैव प्रौद्योगिकी विभाग के सहयोग से राज्यों में कार्यशालाएं आयोजित की गयी है.
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श्री मुंडा ने कहा कि विभिन्न राज्यों द्वारा दर्शाये गये आंकड़ों के अनुसार, एक करोड़ 13 लाख 83 हजार 664 लोगों की स्क्रीनिंग में लगभग 9 लाख 96 हजार 368 (8.75%) में यह बीमारी दिखती है. 9 लाख 49 हजार 57 लोगों में लक्षण और 47 हजार 311 लोगों में बीमारी पायी गयी. जैव प्रौद्योगिकी विभाग इस रोग के इलाज का अनुसंधान कर रही है.
इस बीमारी को फैलने से रोकने के लिए राज्यों को प्रोटोकॉल जारी किये गये हैं. यह सलाह दी गयी है कि अगली पीढ़ी को बीमारी न हो, इसके लिए माता- पिता को उचित परामर्श देने का अभियान चलाये, ताकि वे अपने सिकल सेल एनीमिया (SCA) से ग्रसित बच्चों की शादी किसी दूसरे एससीए से ग्रसित बच्चों से ना करें.
मौके पर श्री मुंडा ने पिरामल फाउंडेशन द्वारा मंत्रालय के लिए तैयार सिकल सेल सपोर्ट पोर्टल का अनावरण किया. उन्होंने कहा कि मुझे उम्मीद है कि जनजातियों में जागरूकता लाने की दिशा में यह पोर्टल लाभदायक होगा. उन्होंने ‘सिकल सेल डिजीज इन इंडिया (Sickle cell disease in india)’ रिपोर्ट को भी जारी किया. कॉन्क्लेव के बारे में सिकल सेल एलायन्स की मानवी वहाने ने किया. स्वागत भाषण फिक्की की अध्यक्ष एव अपोलो हॉस्पिटल्स की एमडी डॉ संगीता रेड्डी ने किया. इस कॉन्क्लेव में देश- विदेश के विशेषज्ञों ने शिरकत की.
क्या है सिकल सेल रोग
यह एक आनुवंशिक रोग (Genetic Disease) है. पीढ़ी दर पीढ़ी चलने वाले इस रोग में गोलाकार लाल रक्तकण (Spherical red blood) शरीर की छोटी रक्तवाहिनी (Blood vessel) में फंस जाती है. जिसके कारण लिवर (Liver), किडनी (Kidney) मस्तिष्क (Brain) आदि अंगों में खून के आवाजाही को रोक देता है. इन रक्तकणों के जल्दी-जल्दी टूटने से हमेशा खून की कमी महसूस होती है. यही कारण है कि इस रोग सिकलसेल एनीमिया भी कहा जाता है.
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने हर साल 19 जून को विश्व सिकल सेल दिवस मनाने की घोषणा की है. झारखंड के आदिवासी क्षेत्रों में भी इस रोग की पहचान हुई है. इसके अलावा ओड़िशा, उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान के कई लोग भी इस रोग से प्रभावित हैं.
Posted By : Samir ranjan.