सिमडेगा. बोलबा प्रखंड के मालसाड़ा पंचायत स्थित जेठूबांध ग्राम सभा ने ऐतिहासिक कदम उठाते हुए वन अधिकार अधिनियम 2006 के तहत पारंपरिक रीति से अधिसूचना बोर्ड की स्थापना की. मौके पर ग्रामीणों ने ढोल-नगाड़ों के साथ पारंपरिक नृत्य करते हुए कार्यक्रम में भाग लिया. कार्यक्रम की शुरुआत ग्राम प्रधान और ग्रामवासियों द्वारा पारंपरिक पूजा-पाठ से की गयी. अधिसूचना बोर्ड इस बात की आधिकारिक घोषणा करता है कि जेठूबांध ग्राम सभा ने अपने क्षेत्र में जंगल, जल और जमीन पर समुदाय आधारित निर्णय लेने की प्रक्रिया को प्रभावी रूप से लागू कर दिया है. इस अवसर पर समर्पण सुरीन, अनूप लकड़ा, अमृत डांग, प्रिंसिला डुंगडुंग और सुनील मिंज उपस्थित रहे. वक्ताओं ने ग्रामीण समुदाय को उनके कानूनी अधिकारों, पारंपरिक ज्ञान और आर्थिक स्वावलंबन के महत्व पर जागरूक किया. अनूप लकड़ा ने वन अधिकार कानून 2006 की मूल भावना को स्पष्ट करते हुए कहा कि यह कानून केवल कानूनी दस्तावेज नहीं, बल्कि हमारी पहचान, संस्कृति और जीवनशैली की सुरक्षा का माध्यम है. जब तक हम अपने अधिकारों को नहीं समझेंगे, तब तक संसाधनों पर हमारा नियंत्रण नहीं हो सकता. समर्पण सुरीन ने जंगल के सामुदायिक प्रबंधन और संरक्षण पर बल देते हुए कहा कि जंगल गांव की संपत्ति है और उसकी रक्षा के लिए गांव को स्वयं संगठित होना होगा. अमृत डांग ने कहा कि जंगल केवल लकड़ी का स्रोत नहीं, बल्कि हमारी संस्कृति और सामूहिकता का प्रतीक है. प्रिंसिला डुंगडुंग और सुनील मिंज ने युवाओं और महिलाओं की सक्रिय भागीदारी की आवश्यकता पर जोर दिया. उन्होंने ग्राम सभा में दस्तावेजीकरण, लेखा प्रक्रिया और वन प्रबंधन योजनाओं में महिलाओं की भूमिका सुनिश्चित करने की बात कही. कार्यक्रम के अंत में जंगल हमारा अधिकार है, ग्राम सभा जिंदाबाद जैसे नारों और पारंपरिक गीत-नृत्य के साथ पूरे क्षेत्र में उत्साह और जागरूकता का माहौल छा गया.
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