सिमडेगा. करगिल युद्ध में अपनी बहादुरी का लोहा मनवाने वाले सिमडेगा बंगारू के महतो टोली निवासी ऑर्डिनरी नायक सूबेदार रामरतन महतो की आंखों में आज भी कारगिल युद्ध की चमक दिखायी देती है. उनके पेट, जांघ व कमर में ऑपरेशन के निशान व उनकी छाती पर लगे मेडल उनकी वीरता की गवाही दे रही है. बंगरू महतो टोली निवासी राम रतन महतो 1889 लाइट रेजिमेंट ऑर्डिनरी नायक सूबेदार के रूप में करगिल के दराज सेक्टर तैनात किये गये थे. दराज सेक्टर में एक जून से लेकर 22 जून तक दुश्मनों से रामरतन महतो लोहा लेते रहे. हर तरफ गोलियों की बौछार हो रही थी. पानी की बूंदों के समान गोलियां पहाड़ी की चोटी से आतंकवादी बरसा रहे थे. 18 जून की रात में रामरतन महतो को बहादुरी दिखाने का अवसर मिला. उस रात हर तरफ बर्फ थी. बर्फ के कारण थोड़ी रोशनी भी थी. इस रोशनी में सूबेदार रामरतन महतो अपनी पोस्ट की ओर सिविल में कुछ लोगो को आते देखा. रामरतन महतो ने अपने अन्य बटालियन जो कारगिल में ही अन्य सेक्टर में ड्यूटी दे रहे थे. सभी सेक्टरों में फोन कर पूछ लिया कि वहां पर सभी जवान और अधिकारी मौजूद है कि नहीं. सभी सेक्टरों से उन्हें जवाब मिला हां हमारे जवान और अधिकारी अपने-अपने सेक्टर में मौजूद हैं. इसके बाद सूबेदार रामरतन महतो समझ गये कि सिविल में यह धोखा देकर आगे बढ़ रहे सभी कोई आतंकवादी है. इसके बाद एमजी ड्यूटी में तैनात रामरतन महतो ने अंधाधुंध गोलियों की बौछार आतंकवादियों पर कर दी. आतंकवादियों को संभलने का मौका भी नहीं मिला. इस बीच रामरतन महतो ने तीन मैगजीन की गोलियां आतंकवादियों पर उतार दी. गोलीबारी में राम रतन महतो ने 29 आतंकवादियों को 18 जून की रात में मार गिराया था. सभी आतंकवादियों को मार गिराने के बाद राम रतन महतो अपने वरीय पदाधिकारियों को इसकी सूचना दी. सूचना पर वरीय पदाधिकारी मौके पर पहुंचे. रामरतन महतो को स्पष्ट शब्दों में कहा अगर भारतीय जवानों को गोली लगी होगी, तो उन्हें कोर्ट मार्शल किया जायेगा. इसके बाद सभी मृतकों की पहचान की गयी, तो सभी 29 मृत आतंकवादी निकले. इसके बाद अफसरों में खुशी का ठिकाना नहीं रहा. एक पंजाबी अफसर ने रामरतन महतो को अपने कंधे पर उठा कर बल्ले-बल्ले बोल कर नाचने लगे. रामतरन महतो कहते हैं कि अगर सभी आतंकवादियों को वे नहीं मारते, तो वे सभी हमारे सभी सेक्टर में तैनात जवानों को मार देते. घटना के बाद रामरतन महतो को सेना के जवानों को ट्रोलिंग प्वाइंट 1075 पर पहुंचाने की ड्यूटी दी गयी. वे जवानों को ट्रोलिंग सेक्टर में पहुंचा कर वापस अपने सेक्टर में लौट रहे थे. इस बीच में 23 जून की रात में करगिल की चोटी से आतंकवादियों द्वारा की गयी फायरिंग में चार स्प्लेंडर उनके शरीर में लगी. एक स्प्लेंडर उनके जांघ में लगी, जिससे उनकी जांघ टूट गयी. दूसरा स्प्लेंडर उनके पेट में लगने के कारण अंतड़ियां बाहर निकल आयी थी. अन्य स्प्लेंडर उनके बांह और कमर में लगी, जिससे वे बुरी तरह से घायल हो गये. घायल अवस्था में ही पेट में स्प्लेंडर लगने के कारण निकली अंतड़ियों को उन्होंने स्वयं से पेट के अंदर डाला और वर्दी खोल कर पेट पर बांधकर अपने वरीय अधिकारियों को इसकी जानकारी दी. उसके बाद उनके सीनियर घायल अवस्था में ही उन्हें इलाज के लिए श्रीनगर ले गये. इस दौरान वे बेहोश हो गये थे. उनका लंबे समय तक इलाज चला. जांघ में स्टील का रड लगा दिया गया.
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