संत जॉन मेरी वियानी पुरोहितों के संरक्षक संत थे

संत जॉन मेरी वियानी पुरोहितों के संरक्षक संत थे. उनके संघर्ष व सफलता की बेमिसाल कहानी है.

By VIKASH NATH | August 3, 2025 9:26 PM
an image

फोटो फाइल: 3 एसआइएम:14-संत जॉन वियानी सिमडेगा. संत जॉन मेरी वियानी पुरोहितों के संरक्षक संत थे. उनके संघर्ष व सफलता की बेमिसाल कहानी है. चार अगस्त को उनका पर्व दिवस है. इस मौके पर गिरजा घरों में विशेष अनुष्ठान का आयोजन किया जाता है. उनका जन्म सन 1786 ई में फ्रांस के दक्षिण-पूर्व भाग में दारदिली नामक एक ग्राम में हुआ था. यह समय फ्रांस की क्रान्ति का युग था और धर्म-अभ्यास करना बहुत कठिन था. फिर भी जॉन बियानी अपनी आइ वर्ष की उम्र से ही धर्म-अभ्यास में सक्रिय थे. भेड़ चराते समय वह साथी बालक चरवाहों को एकत्र करके माला-विनती करते का तरीका सिखाते थे तथा उनके साथ माला-विनती किया करते थे. स्वयं गुफा में रखी गयी मां मरियम की छोटी मूर्ति के सामने गुप्त रूप से अपनी प्रार्थनाएं किया करते थे. 13 वर्ष की उम्र में उन्होंने एक गौशाले में अपना प्रथम परम प्रसाद ग्रहण किया.संत वियानी सदा गरीबों के प्रति सहृदय बने रहते और उनकी हर सम्भव सहायता करते थे. अध्ययन के लिए वह पल्ली पुरोहित के पास भेजे गये. पुरोहित बनने के लिए उन्होंने अध्ययन किया. सभी प्रकार की बाधाओं को पार किया और सन् 1815 में उनका पुरोहिताभिषेक हुआ. तीन वर्षों बाद ये आर्स नामक एक छोटी पल्ली में भेज दिये गये. जीवन के 40 वर्षों तक उन्होंने घोर तपस्या की, शरीर को कोड़े से मारते, जिस कारण लहू बहने लगता. उनके इस प्रकार की तपस्या और कष्ट-सहन का एक मात्र कारण यह था कि ईश्वर इनके पल्ली वासियों के पापों को क्षमा करें तथा लोग अपना जीवन-मार्ग बदल दें. सही मार्ग पर चलें. गरीब लड़कियों के लिये एक अनाथालय की स्थापना की. आगे चलकर इस अनाथालय को एक स्कूल में बदल दिया. पवित्र यूख्रीस्त को आराधना के लिये एक संघ की स्थापना की. उनके धार्मिक कामों में एक विशेषता यह थी कि वह लोगों का पाप स्वीकार सुनते समय बड़े प्यार से सही निर्देशन देते. इनके इस परिश्रम के फल स्वरूप बहुत लोग पाप स्वीकार करने इनके पास आने लगे. उन्हें आत्माओं को पढ़ने की शक्ति प्राप्त थी. बीमारों के लिये प्रार्थना करते और इनकी प्रार्थना से बहुत से रोगियों ने चंगाई प्राप्त की. उन्होंने अपनी मृत्यु का समय पहले से बता दिया था और इनके कहने के के अनुसार ही चार अगस्त 1859 को उनकी मृत्यु हो गयी. संत पिता पिउस 10वीं ने उन्हें संत की उपाधि दे दी एवं वह पल्ली पुरोहितों के संरक्षक संत ठहराये गये.

डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

संबंधित खबर और खबरें

यहां सिमडेगा न्यूज़ (Simdega News) , सिमडेगा हिंदी समाचार (Simdega News in Hindi), ताज़ा सिमडेगा समाचार (Latest Simdega Samachar), सिमडेगा पॉलिटिक्स न्यूज़ (Simdega Politics News), सिमडेगा एजुकेशन न्यूज़ (Simdega Education News), सिमडेगा मौसम न्यूज़ (Simdega Weather News) और सिमडेगा क्षेत्र की हर छोटी और बड़ी खबर पढ़े सिर्फ प्रभात खबर पर .

होम E-Paper News Snaps News reels
Exit mobile version