लॉकडाउन ने बदली साहित्य की दुनिया, ऑनलाइन हो रहे हैं कवि सम्मेलन, मुशायरे

जयपुर : कोरोना वायरस और लॉकडाउन ने जीवन के साथ ही साहित्य की दुनिया को भी बदल दिया है. कवि सम्मेलन, गोष्ठियां और मुशायरे अब सब ऑनलाइन हो गये हैं. जानकारों का कहना है कि यह बदलाव साहित्य जगत के लिए क्रांतिकारी साबित होगा.

By Agency | May 3, 2020 12:03 PM
an image

जयपुर : कोरोना वायरस और लॉकडाउन ने जीवन के साथ ही साहित्य की दुनिया को भी बदल दिया है. कवि सम्मेलन, गोष्ठियां और मुशायरे अब सब ऑनलाइन हो गये हैं. जानकारों का कहना है कि यह बदलाव साहित्य जगत के लिए क्रांतिकारी साबित होगा.

इन बदले हालात में अगर प्रमुख प्रकाशन घरों और साहित्य संगठनों के सोशल मीडिया मंचों को देखें, तो कहीं राजकमल के फेसबुक पन्ने पर पुष्पेश पंत ‘स्वाद सुख’ में लड्डुओं की बात कर रहे हैं, तो ‘रेख्ता’ के पेज पर शबाना आजमी और जावेद अख्तर की कविता के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा है.

वहीं, नेहा राय अगर कृष्णा सोबती और अमृता प्रीतम के लेखन की बात करती दिखेंगी, तो वाणी प्रकाशन की ऑनलाइन गोष्ठी में रख्शंदा खान ‘गांधीनामा’ को लेकर दर्शकों से रू-ब-रू हैं. जाने-माने इतिहासकार, लेखक प्रोफेसर पुष्पेश पंत कहते हैं, ‘दुनिया के लिए अब यहां से लौटना मुश्किल होगा.’

यानी संवाद के ये नये तरीके शायद हमारे जीवन का हिस्सा बनने जा रहे हैं. यह बदलाव पिछले एक महीने में लॉकडाउन शुरू होने के बाद आया है. शुरुआत कहीं से भी हुई, लेकिन धीरे-धीरे सभी प्रमुख प्रकाशन कंपनियां, साहित्यिक संगठन अपने-अपने सोशल मीडिया पन्नों पर साहित्यकारों, कवियों, लेखकों, आलोचकों को बुलाने लगे. चाहे वह वाणी प्रकाशन हो, राजकमल प्रकाशन हो, राजपाल एंड संस हो या रेख्ता.

राजकमल प्रकाशन के संपादक (सोशल मीडिया) सुमेर सिंह राठौड़ बताते हैं कि समूह के फेसबुक पेज पर 22 अप्रैल से 30 अप्रैल तक 109 जाने-माने लेखक 147 लाइव सेशन कर चुके हैं. अगर आंकड़ों की बात की जाये, तो दर्शकों की संख्या छह लाख से भी अधिक रही है. यह अद्भुत है और इसी को ध्यान में रखते हुए राजकमल ने इस क्रम को जारी रखने का फैसला किया है.

केवल साहित्य ही नहीं, बल्कि गायन और अभिनय समेत तमाम विधाओं के बड़े नाम इन दिनों ऑनलाइन मंच पर अपने दर्शकों से रू-ब-रू हो रहे हैं. चाहे वह लेखक विनोद कुमार शुक्ल हों, मंगलेश डबराल, ममता कालिया, उषा किरण खान, नासिरा शर्मा, गीताश्री और अशोक वाजपेयी हों या गायक उषा उत्थुप और जावेद अली.

श्री पंत कहते हैं कि वह पहले भी यूट्यूब वगैरह पर सक्रिय थे, लेकिन इस तरह से नियमित रूप से दर्शकों-पाठकों से जुड़ना अनूठा व बढ़िया अनुभव रहा है. यह न केवल इंटरेक्टिव है, बल्कि सस्ता माध्यम भी है. आपके पास अगर इंटरनेट सुविधा वाला ठीक-ठाक-सा फोन है, तो आप पूरी दुनिया से जुड़ सकते हैं. इसकी पहुंच का कोई मुकाबला नहीं है. आप दूर-दराज के किसी भी गांव तक जा सकते हैं.

श्री पंत ‘स्वाद सुख’ नाम से एक दैनिक कार्यक्रम कर रहे हैं, जिसमें वह लड्डुओं से लेकर समोसे और पकौडे़ तक विभिन्न व्यंजनों की बात अपनी विशिष्ट शैली में करते हैं. जयपुर के बोधि प्रकाशन ने भी ऐसी शुरुआत की और इसके प्रति लोगों के उत्साह को देखते हुए लाइव सेशन के क्रम को जारी रखने का फैसला किया है.

बोधि प्रकाशन के मायामृग के अनुसार, ‘फेसबुक पर दैनिक लाइव सेशन की शुरुआत 17 अप्रैल को की थी और अब 19 मई तक का कार्यक्रम तय है. हर दिन एक लेखक अपनी रचनाओं की बात इस सेशन में करता है.’

क्या आभासी दुनिया के जरिये दर्शकों और पाठकों से जुड़ने का यह क्रम लॉकडाउन के बाद भी चलेगा या दुनिया वापस उन्हीं मुशायरों, कवि सम्मेलनों की ओर लौट आयेगी? इस सवाल पर श्री पंत कहते हैं, ‘कोरोना के बाद की दुनिया कोरोना से पहले वाली दुनिया बिलकुल नहीं होगी. लोगों को साहित्य ऑनलाइन पढ़ने, सुनने और देखने की आदत पड़ जायेगी. मेरे ख्याल से लोगों के लिए लौटना मुश्किल होगा, खासकर शहरी मध्यमवर्गीय परिवारों के लिए.’

वहीं, मायामृग कहते हैं कि यह कहना मुश्किल है कि आनलॉइन या आभासी दुनिया पूरी तरह से पारंपरिक मुशायरों, गोष्ठियों और सम्मेलन की जगह ले लेगी. इतनी जल्दी यह होने वाला भी नहीं है. हालांकि, जब तक लोगों के मन से वायरस का डर नहीं निकलेगा, तकनीक का यह प्रयोग चलता रहेगा.

संबंधित खबर
संबंधित खबर और खबरें
होम E-Paper News Snaps News reels
Exit mobile version