अस्पताल में दवा तक के लिए तरसीं डॉ. सरोज राठौर, कोरोना काल में अवसाद के शिकार लोगों की करती थीं निशुल्क काउंसलिंग

पिछले साल लॉकडाउन के दौरान अवसादग्रस्त लोगों का काउंसलिंग के जरिये हौसला बढ़ाने वाली डॉ. सरोज राठौर नहीं रहीं. कोरोना संक्रमण की पुष्टि के बाद हैलट में भर्ती होने पर उन्हें ढंग से इलाज तक नहीं मिला.

By संवाद न्यूज | April 13, 2021 9:41 AM
feature

कानपुर : पिछले साल लॉकडाउन के दौरान अवसादग्रस्त लोगों का काउंसलिंग के जरिये हौसला बढ़ाने वाली डॉ. सरोज राठौर नहीं रहीं. कोरोना संक्रमण की पुष्टि के बाद हैलट में भर्ती होने पर उन्हें ढंग से इलाज तक नहीं मिला. मौत से पहले उन्होंने सखी केंद्र की महामंत्री नीलम चतुर्वेदी को फोन कर सबसे बड़े सरकारी अस्पताल में मरीजों की दुर्दशा पर चिंता जाहिर की थी.

महिला महाविद्यालय, किदवईनगर में मनोविज्ञान विभाग से सेवानिवृत्त विभागाध्यक्ष डॉ. सरोज राठौर सखी केंद्र की कार्यकारी बोर्ड सदस्य भी थीं. उनके पति मुनींद्र सिंह भदौरिया वर्ष 1965 में भारत-चीन युद्ध में शहीद हुए थे. पूर्व कैबिनेट मंत्री विद्यावती राठौर उनकी बुआ थीं. वह खुद समाजसेवी रहीं. कोरोनाकाल में लॉकडाउन की वजह से अवसादग्रस्त लोगों की वह निशुल्क काउंसलिंग करती थीं.

नीलम चतुर्वेदी ने बताया कि डॉ. सरोज राठौर की तबीयत आठ अप्रैल को खराब हुई. रात 10 बजे उन्हें मधुलोक अस्पताल में भर्ती कराया गया. उन्हें आईसीयू में रखा गया. नौ अप्रैल की सुबह जब कोरोना का टेस्ट हुआ तो रिपोर्ट पॉजिटिव आई. उसी रात 12 बजे उन्हें हैलट में भर्ती कराया गया.10 अप्रैल को बात करती रहीं. यहां दवा तक न मिलने पर डॉ. सरोज ने एक रोगी का मोबाइल मांगकर नीलम चतुर्वेदी को फोन किया था.

Also Read: Coronavirus : कोविड वार्ड में भर्ती होने के लिए ढाई घंटे किया इंतजार, एंबुलेंस में मौत

बातचीत में उन्होंने इलाज में हुई लापरवाही की पोल खोली थी.11 अप्रैल को हालत गंभीर हुई और देर रात एक बजे उनकी मौत की खबर आई.

Posted By : Amitabh Kumar

संबंधित खबर
संबंधित खबर और खबरें
होम E-Paper News Snaps News reels
Exit mobile version