अनूठे हैं अयोध्या में काले राम और गोरे राम के मंदिर

भक्त और मंदिर का रिश्ता जीवनभर जुड़ा रहता है. मंदिर के व्यवस्थापक यशवंत दिगंबर देशपांडे के अनुसार, अयोध्या के दूसरे मंदिरों में महंत होते हैं, जबकि काले राम के मंदिर में वे सेवक या व्यवस्थापक कहलाते हैं.

By Prabhat Khabar News Desk | January 22, 2024 5:21 AM
feature

अयोध्या, कृष्ण प्रताप सिंह : अगर आप अयोध्या आ रहे हैं, तो रामलला के दर्शन-पूजन के बाद स्वर्गद्वार में संचालित अपनी तरह के अनूठे काले राम और गोरे राम के मंदिरों में जरूर जाएं. बहुत संभव है कि इन दोनों मंदिरों में दर्शन-पूजन करते हुए आपको गोस्वामी तुलसीदास की लोकप्रिय चौपाई- ‘जाकी रही भावना जैसी, प्रभु मूरति देखी तिन्ह तैसी’ याद आ जाये और आप ठीक से समझ पायें कि भगवान राम को ‘सबके और सबमें’ क्यों कहा जाता है. प्रसंगवश, इनमें काले राम के मंदिर सार्वजनिक महाराष्ट्रीय संस्थान के तत्वावधान में एक ट्रस्ट द्वारा संचालित है और उसका इतिहास यों तो कुल मिलाकर 275 वर्ष पुराना ही है, लेकिन अपने अनूठेपन के कारण ये अन्य मंदिरों से अलग हैं.


अयोध्या के दूसरे मंदिरों में होते हैं महंत

अयोध्या में महाराष्ट्रीय परिवारों, भक्तों या संतों की संख्या ज्यादा न होने के बावजूद वह उनकी अस्मिता का इकलौता प्रतीक बना हुआ है. यह पूर्णरूपेण श्रद्धालुओं के चढ़ावे पर ही निर्भर है. जो भी श्रद्धालु 500 रुपयों से अधिक की धनराशि चढ़ाता है, उसकी रकम बैंक के सावधि जमा खाते में जमा की जाती है और वर्ष में एक दिन उसके ब्याज से पूजा की जाती है और उसे प्रसाद भेजा जाता है. इस तरह भक्त और मंदिर का रिश्ता जीवनभर जुड़ा रहता है. मंदिर के व्यवस्थापक यशवंत दिगंबर देशपांडे के अनुसार, अयोध्या के दूसरे मंदिरों में महंत होते हैं, जबकि काले राम के मंदिर में वे सेवक या व्यवस्थापक कहलाते हैं.

विग्रह में संपूर्ण ‘श्रीराम पंचायतन’ है. बीच में भगवान राम, उनके बायें सीता और भरत, दायें लक्ष्मण और श़त्रुघ्न हैं. लक्ष्मण के हाथ में छत्र का दंड, शत्रुघ्न के हाथ में चंवर, भरत के हाथ में पंखा और उनके चरणों में सेवाभाव में हनुमान विराजमान हैं. विग्रह का दर्शन वर्ष में दो दिन होता है- संवत्सर के प्रथम व रामनवमी के दिन’.

बाबर के समय मूर्तियों को निकालकर सरयू नदी में प्रवाहित किया गया

काले राम के मंदिर की स्थापना के पीछे कथा है कि 2073 वर्ष पहले उज्जयिनी नरेश विक्रमादित्य ने अयोध्या में पांच मूल मंदिरों की स्थापना की. ये मंदिर थे-जन्मभूमि, रत्नसिंहासन, कनक भवन, सहस्रधारा और आदिशक्ति. मुगल बादशाह बाबर के समय जन्मभूमि और कनक भवन के पुजारियों को यवनों द्वारा मूर्ति भंग का अंदेशा हुआ, तो उन्होंने प्राण-प्रतिष्ठित मूर्तियां वहां से निकालीं और सरयू नदी में प्रवाहित कर दीं.

Also Read: Ayodhya Ram Mandir: रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के दिन झारखंड होगा राममय, 51 हजार मंदिरों में होंगे अनुष्ठान
पंडित नरसिंहराव मोघे को सहस्रधारा में मिली एक मूर्ति

महाराजा दर्शन सिंह के समय संवत् 1805 में जन्मभूमि की मूर्ति ‘दृष्टांत के आधार पर’ एक महाराष्ट्रीय ब्राह्मण पंडित नरसिंहराव मोघे को सहस्रधारा में मिली, जो ‘श्रीराम पंचायतन विग्रह’ थी. स्वप्न में मिले आदेश के अनुसार मोघे ने इस विग्रह को स्वर्गद्वार में सुप्रसिद्ध नागेश्वरनाथ के सानिध्य में स्थापित कर दिया. वह संवत 1806 (सन् 1749) था. चूंकि स्थापित विग्रह काले प्रस्तर (शालिग्राम शिला) में था, इसलिए कालांतर में मंदिर का नाम कालेराम मंदिर पड़ गया. आरंभ में यह मंदिर बहुत छोटा था. नत्थूराम भट्ट मढ़ीकर के समय इसे भव्य रूप प्रदान किया गया.

काले राम के मंदिर के ठीक सामने एक गोरे राम का मंदिर

काले राम के मंदिर के ठीक सामने एक गोरे राम का मंदिर भी है. जो श्रद्धालु काले राम के मंदिर में आते हैं, उन्हें वह भी बरबस आकर्षित कर लेता है. क्या इन दोनों मंदिरों में कोई प्रतिद्वंद्विता है? काले राम मंदिर के व्यवस्थापक हंस कर कहते हैं- क्या हुआ जो किसी को काले राम अच्छे लगते हैं और किसी को गोरे. उनकी पहचान तो उनके उदात्त गुणों और मूल्यों से होती है.

Also Read: सात समंदर पार भी है राम की गूंज, रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के अवसर पर विदशों में होगा खास आयोजन

संबंधित खबर
संबंधित खबर और खबरें

Viral Video: मुर्गा-मुर्गी का रोमांटिक Kiss, वायरल वीडियो ने मचाया धमाल

Uttarkashi Video: 25 सेकंड में सबकुछ तबाह…बदहवास भागते दिखे लोग, धराली का रोंगटे खड़े करने वाला VIDEO

Viral Video: शेरनी पर लकड़बग्घों का हमला, ‘सुपरमैन’ की तरह एंट्री मार शेर ने मचाई खलबली, देखें वीडियो

Viral Video: नल के ऊपर चढ़कर नहाते दिखा सांप, वीडियो देखकर उड़ जाएंगे होश

DOWNLOAD APP!
होम E-Paper News Snaps News reels
Exit mobile version