सामाजिक कार्यकर्ता ने लगाए थे गंभीर आरोप
इस मामले की शुरुआत सामाजिक कार्यकर्ता दिवाकर नाथ त्रिपाठी द्वारा दायर याचिका से हुई थी, जिसमें उन्होंने दावा किया था कि केशव मौर्य ने जिस डिग्री को चुनावी नामांकन में प्रस्तुत किया वह अमान्य है और उस पर न केवल चुनाव लड़ा गया बल्कि पेट्रोल पंप भी आवंटित करा लिया गया. उन्होंने मांग की थी कि मौर्य के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कर इस पूरे मामले की निष्पक्ष पुलिस जांच कराई जाए. याचिका में कहा गया था कि यदि इस तरह के मामलों पर सख्ती से कार्रवाई नहीं की गई, तो लोकतांत्रिक व्यवस्था पर गंभीर असर पड़ेगा.
सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर हाई कोर्ट में हुई सुनवाई
इस मामले में शुरुआत में त्रिपाठी द्वारा प्रयागराज की जिला अदालत में याचिका दाखिल की गई थी, जिसे अदालत ने खारिज कर दिया था. इसके बाद उन्होंने हाई कोर्ट में चुनौती दी, लेकिन वहां भी सफलता नहीं मिली. आखिरकार उन्होंने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया, जहां से उन्हें थोड़ी राहत मिली. सुप्रीम कोर्ट ने यह कहते हुए हाई कोर्ट को निर्देश दिया कि मामले की मेरिट के आधार पर दोबारा सुनवाई की जाए, क्योंकि देरी को माफ किया जा सकता है जब मामला सार्वजनिक हित से जुड़ा हो.
तकनीकी आधार पर याचिका खारिज
हाई कोर्ट में दायर याचिका सीआरपीसी की धारा 156(3) के तहत थी, जिसमें प्राथमिकी दर्ज करने और पुलिस जांच की मांग की गई थी. हालांकि, एसीजेएम (अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट), प्रयागराज ने 2021 में यह अर्जी खारिज कर दी थी। इसके खिलाफ हाई कोर्ट में फरवरी 2024 में पुन: याचिका दायर की गई थी, जिसे कोर्ट ने देरी के आधार पर खारिज कर दिया. कोर्ट का तर्क था कि याचिका ट्रायल कोर्ट के आदेश के 300 दिन बाद दायर की गई थी, जो कि अत्यधिक विलंब माना गया.
हाई कोर्ट ने दोबारा जांच से किया इनकार
जनवरी 2025 में सुप्रीम कोर्ट ने त्रिपाठी की याचिका पर सुनवाई करते हुए देरी को नजरअंदाज किया और हाई कोर्ट को कहा कि वह मामले को गुण-दोष के आधार पर सुने. अप्रैल 2025 में इस पर फिर से सुनवाई शुरू हुई. हालांकि, हाई कोर्ट ने तमाम पुराने तथ्यों और दस्तावेजों की समीक्षा करने के बाद यह निष्कर्ष निकाला कि याचिकाकर्ता की ओर से कोई ऐसा नया या ठोस साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किया गया जिससे यह साबित हो सके कि केशव प्रसाद मौर्य ने जानबूझकर फर्जी डिग्री का इस्तेमाल किया हो. कोर्ट ने कहा कि यह मामला दोबारा जांच योग्य नहीं है और याचिका को खारिज कर दिया गया.