Varanasi News: वित्तीय अनियमितता के दोषी प्रोफेसर से हटा प्रतिबंध तो उठे सवाल, लगे थे ये गंभीर आरोप

बीएचयू में वित्तीय अनियमितता में तीन वर्ष के लिए प्रतिबंधित किए गए प्रोफेसर को कार्यवाहक कुलपति ने प्रतिबंध से मुक्त कर दिया है.

By Prabhat Khabar Digital Desk | November 26, 2021 7:10 PM
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Varanasi News: काशी हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) में वित्तीय अनियमितता के आरोप में फंसे एक प्रोफेसर को फाइनेंशियल इरेगुलेरिटी के मामले में दोषमुक्त कर दिया गया है. इन पर 33 लाख की अनियमित खरीदारी का आरोप लगा था. इन्हें दोष मुक्त भी पूराने कुलपति ने ही किया है, जबकि नए कुलपति के नियुक्त होने के बाद उनके पास ऐसा कोई अधिकार नहीं हैं.

9 लाख रुपए अतिरिक्त देने का आरोप

दरअसल, खरीद-फरोख्त काे लेकर फंसे विश्वविद्यालय के दुग्ध विज्ञान एवं खाद्य प्रोद्यौगिकी विभाग के प्रोफेसर पर शिक्षण कार्यो के लिए 3-4 गुना रेट पर डिवाइसेज और वस्तुएं खरीदे जाने का आरोप लगा था. इस खरीदी में पूर्व कुलपति से लेकर तमाम अधिकारियों के मुहर भी हैं. साक्ष्यों के आधार पर पता चलता है कि इन वस्तुओं के लिए 24 लाख रुपए ही दिए गए थे. मगर, बाद में बिना किसी अप्रूवल के अनैतिक तरीके से इसके लिए 9 लाख रुपए अतिरिक्त दे दिए गए. जोकि पूरी तरह अनियमितता या फालतू खर्च में शामिल हैं.

दोषी पाए गये थे प्रोफेसर

बता दें कि इस मामले में BHU ने 2 साल पहले एक 5 सदस्यों की तथ्य खोज समिति कमेटी (FFC) बनाई, जिसमे अनिल चौहान को 12 अक्टूबर, 2020 को कारण बताओ नोटिस जारी हुआ. 27 सितंबर को प्रभारी कुलपति ने सजा देने का ऑर्डर निकाला. इस साल सितंबर में इन्हें दोषी पाया गया.

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अचानक वापस लिया केस

इसके बाद अगले 3 साल के लिए इन्हें किसी भी प्रशासनिक पद संभालने पर प्रतिबंध लगा दिया गया, और अभी अचानक से 23 नवंबर को प्रभारी कुलपति के आदेश से संयुक्त रजिस्ट्रार द्वारा केस वापस ले लिया गया.

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जांच में क्लीन चिट पर सवाल

सवाल ये खड़ा होता है कि यदि ऐसा फैसला करना ही था ताे इसे एक्जीक्यूटिव काउंसिल में लेकर मामले को आते, क्योंकि BHU के नए कुलपति प्रो. सुधीर कुमार जैन ने अभी तक ज्वॉइन नहीं ही किया है. फिर 2 दिन पहले प्रो. चौहान को जांच में क्लीन चिट कैसे मिली. वहीं, इनके ऊपर जो 5 सदस्यी जांच कमेटी बैठी थी उसने भी इन पर सारे प्रतिबंध हटा लिए.

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प्रो. अनिल कुमार चौहान ने कही ये बात

प्रो. अनिल कुमार चौहान का कहना है कि उन्हें न्याय मिला है, क्योंकि उन्हें फर्जी कागज पर फसाया गया था. विभाग में जो भी सामानों की खरीदी हुई थी, उन सब पर पूर्व कुलपति प्रो. राकेश भटनागर के हस्ताक्षर हैं. इस केस का संबंध आज के मामले से बिल्कुल भी नहीं है. सारे सामान जेम के द्वारा बेहतर क्वालिटी के खरीदे हुए हैं, जबकि BHU के रजिस्ट्रार डॉ. नीरज त्रिपाठी ने बताया कि उन्हें इस मामले में कोई जानकारी नहीं है.

रिपोर्ट- विपिन सिंह

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