काशी ने पुकारा, लिआ ने सुना, शिव भक्ति में रंगों से रची एक विदेशी कहानी

VARANASI NEWS: फ्रांस की 29 वर्षीय लिआ शांति की तलाश में वाराणसी आईं और शिव भक्ति में लीन हो गईं. पांडे घाट पर रहकर वह योग, पूजा और चित्रकला के माध्यम से भगवान शिव की आराधना करती हैं. लिआ के लिए पेंटिंग साधना है, और काशी ने उन्हें आंतरिक शांति दी है.

By Abhishek Singh | May 29, 2025 7:55 PM
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VARANASI NEWS: भगवा वस्त्रों में लिपटी, रुद्राक्ष की माला पहने, माथे पर तिलक लगाए और हाथ में भगवान शिव की पेंटिंग थामे फ्रांस की 29 वर्षीय युवती लिआ ‘ॐ नमः शिवाय’ का जाप करती हुई गंगा तट पर नजर आती हैं. लिआ वाराणसी में शांति की तलाश में आई हैं, और पिछले दो महीनों से पांडे घाट इलाके में रह रही हैं.

हर सुबह गंगा के घाटों पर योग और पूजन

लिआ की हर सुबह गंगा तट के किसी घाट पर योग से शुरू होती है. उसके बाद वह भगवान शिव को अर्पित करती हैं पूजा और फिर शुरू करती हैं अपनी साधना चित्रकला. लिआ के लिए चित्र बनाना केवल एक शौक नहीं, बल्कि यह उनके लिए साधना और शिव की आराधना का माध्यम है.

“मेरे लिए पेंटिंग ध्यान की तरह है. जब मेरे मन में कोई भावना आती है, तो मैं उसे रंगों के ज़रिए कागज़ पर उकेर देती हूँ. यहाँ की ऊर्जा मेरे चित्रों को प्रभावित करती है,” लिआ ने प्रभात खबर को बताया.

बचपन से चित्रकला का शौक, अब शिव की भक्ति में रंग भर रही हैं

लिआ को बचपन से ही चित्रकला का शौक रहा है. वे कहती हैं, “जब भी समय मिलता है या यात्रा पर होती हूँ, मैं पेंटिंग करती हूँ. मेरे लिए यह एक शौक है, लेकिन अब यह मेरे भक्ति का हिस्सा बन गया है.”

काशी के घाटों पर बैठकर वे भगवान शिव का स्मरण करते हुए पेंटिंग बनाती हैं. उनके चित्रों में शिव की छवि, गंगा की लहरें और मंदिरों की आध्यात्मिकता झलकती है.

धार्मिक कट्टरता से परेशान होकर आईं थीं काशी, मिली आत्मिक शांति

फ्रांस में शेफ के रूप में काम करने वाली लिआ धार्मिक कट्टरता से विचलित थीं. वे आंतरिक शांति की खोज में काशी आईं और यहीं की होकर रह गईं.

“काशी वह स्थान है जहां भगवान शिव शांति, मुक्ति और आनंद प्रदान करते हैं. मैंने इसे स्वयं अनुभव किया है. मैं केवल एक सप्ताह के लिए आई थी, लेकिन यहाँ की ऊर्जा ने मुझे रोक लिया,” लिआ ने भावुक होकर कहा.

काशी का रहस्यपूर्ण आकर्षण

लिआ कहती हैं, “काशी की गलियों में, मंदिरों में और घाटों पर चलते समय जो अनुभूति होती है, उसे शब्दों में बयान करना मुश्किल है. यहाँ की ऊर्जा अलौकिक है.”

वे आगे बताती हैं कि वे नवंबर में फिर से काशी लौटेंगी और इस बार लंबे समय तक यहीं रहने का विचार है. “यह शहर बहुत आरामदायक है, रहने के लिए बेहद उपयुक्त. मैं अपने पिता के साथ फ्रांस में रहती हूँ, उनका अपना रेस्टोरेंट है. लेकिन काशी ने जो अनुभव दिया है, वह कहीं और संभव नहीं.”

शिव में लीन होकर बना रही हैं आध्यात्मिक कला

लिआ की पेंटिंग्स सिर्फ रंगों का खेल नहीं, बल्कि भगवान शिव के प्रति समर्पण की एक झलक हैं. वे अपनी हर कला में शिव को महसूस करती हैं और हर चित्र उनके लिए एक पूजा की तरह है.

काशी की सड़कों पर, घाटों पर और मंदिरों के पास जब कोई भगवा वस्त्रधारी विदेशी युवती ध्यानमग्न होकर चित्र बना रही होती है, तो वह लिआ ही होती हैं जो अब काशी की आत्मा से जुड़ चुकी हैं.

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