मेडिकल एक्सपर्ट की राय में अदालत नहीं दे सकती दखल: हाइकोर्ट

कोर्ट ने कहा कि न्यायिक हस्तक्षेप केवल तभी उचित है जब विशेषज्ञ की राय में दुर्भावना, मनमानी या असंगति के स्पष्ट सबूत हों.

By GANESH MAHTO | May 28, 2025 12:26 AM
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कोलकाता. कलकत्ता हाइकोर्ट ने स्पष्ट किया है कि कोई भी अदालत चिकित्सा विशेषज्ञों के निर्णय या राय पर अपील पर विचार नहीं कर सकती, न ही वह विशेषज्ञों के निर्णय की जगह अपना निर्णय दे सकती है. न्यायाधीश अनिरुद्ध रॉय की पीठ ने केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल (सीएपीएफ) में भर्ती से संबंधित एक मामले की सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी की. कोर्ट ने कहा कि न्यायिक हस्तक्षेप केवल तभी उचित है जब विशेषज्ञ की राय में दुर्भावना, मनमानी या असंगति के स्पष्ट सबूत हों. इस मामले में ऐसा कोई आधार नहीं था. याचिकाकर्ता सीएपीएफ (जीडी) परीक्षा 2024 का एक अभ्यर्थी था. उसने शारीरिक दक्षता परीक्षण तो पास कर लिया, लेकिन सात अक्तूबर 2024 को चिकित्सा परीक्षा के दौरान उसे अंगुलियों को चिपकने के कारण अयोग्य घोषित कर दिया गया. इसके बाद उसने 14 अक्तूबर 2024 को आयोजित समीक्षा चिकित्सा परीक्षण के लिए आवेदन किया, जिसमें अयोग्यता के लिए उसी आधार की पुष्टि की गयी. हालांकि 23 अक्तूबर 2024 को पश्चिम बंगाल के एक सरकारी चिकित्सा केंद्र में बाद में हुई जांच में प्रमाणित किया गया कि दोनों हाथों की उंगलियों में क्लबिंग थी. इसी के खिलाफ याचिकाकर्ता ने हाइकोर्ट में याचिका दायर की थी. कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा कि याचिकाकर्ता के मामले में चिकित्सा विशेषज्ञों ने अंगुलियों के आपस में जुड़ने का उल्लेख किया और उस अवलोकन के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला कि यह अयोग्यता का उचित कारण है. न्यायालय ने निष्कर्ष निकाला कि अदालत विशेषज्ञों की राय पर अपील नहीं करती है या विशेषज्ञों की राय के स्थान पर अपने विचार नहीं रखती है. न्यायिक हस्तक्षेप केवल तभी उचित है जब विशेषज्ञ की राय में स्पष्ट रूप से दुर्भावनापूर्ण इरादा, मनमानी या असंगति हो. इनमें से कोई भी इस मामले में मौजूद नहीं है.

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