एक निजी डायग्नोस्टिक सेंटर को तुरंत बंद करने का निर्देश

कमीशन के चेयरमैन व सेवानिवृत्त जस्टिस असीम कुमार बनर्जी ने कहा कि संजय साधुखां ने अपनी गर्भवती पत्नी, 31 वर्षीय महिला को प्रसव के लिए 2019 में मेगासिटी नर्सिंग होम में भर्ती कराया था.

By GANESH MAHTO | June 12, 2025 1:07 AM
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कोलकाता. दो मामलों में वेस्ट बंगाल क्लीनिकल एस्टेब्लिशमेंट रेगुलेटरी कमीशन ने बुधवार को हुगली के मुख्य चिकित्सा अधिकारी को ग्लोबकेयर डायग्नोस्टिक सेंटर और पॉली क्लीनिक को तुरंत बंद करने का निर्देश दिया और मेगासिटी नर्सिंग होम के अधिकारियों को एक मरीज के रिश्तेदारों को 15 दिनों के भीतर 2 लाख रुपये का जुर्माना देने को कहा है, क्योंकि आयोग ने दोनों निजी स्वास्थ्य प्रतिष्ठानों द्वारा गंभीर चिकित्सा लापरवाही पायी थी.कमीशन के चेयरमैन व सेवानिवृत्त जस्टिस असीम कुमार बनर्जी ने कहा कि संजय साधुखां ने अपनी गर्भवती पत्नी, 31 वर्षीय महिला को प्रसव के लिए 2019 में मेगासिटी नर्सिंग होम में भर्ती कराया था. एक लड़की को जन्म देने के बाद महिला ने दोपहर करीब एक बजे दर्द की शिकायत की. जिसके बाद उसकी मौत भी हो गयी. उधर, नर्सिंग होम के अधिकारियों ने आयोग को बताया कि उन्होंने डॉक्टर को सूचित किया था. श्री बनर्जी ने कहा कि नर्सिंग होम के अधिकारियों को पर्याप्त चिकित्सा प्रबंध करना चाहिए था. परिवार के सदस्यों द्वारा डॉक्टर के खिलाफ शिकायत के बाद वेस्ट बंगाल मेडिकल काउंसिल ने एक विशेषज्ञ द्वारा जांच शुरू की.

जांच दल को चौंकाने वाला बुनियादी ढांचा मिला. मेडिकल काउंसिल द्वारा नियुक्त विशेषज्ञों ने नर्सिंग होम को “मानव वधशाला ” करार दिया. राज्य मेडिकल काउंसिल ने अंततः डॉक्टर के लाइसेंस को दो साल के लिए रद्द कर दिया. आरोपी डॉक्टर ने पुनर्विचार के लिए स्वास्थ्य विभाग में अपील की. वहां भी उसके अपील को खारिज कर दिया गया. डॉक्टर ने कलकत्ता उच्च न्यायालय में एक रिट याचिका दायर की है. ऐसे कमीशन ने कहा कि कलकत्ता उच्च न्यायालय द्वारा मामले की सुनवाई के बाद वे फिर से इस मामले की सुनवाई करेंगे.

एक अन्य मामले में आयोग ने हुगली जिला के मुख्य स्वास्थ्य अधिकारी को ग्लोबकेयर डायग्नोस्टिक सेंटर को बंद करने का निर्देश दिया और यह आयोग को जुर्माने के रूप में 50,000 रुपये भी जमा करने को कहा है. आयोग ने पुलिस को डायग्नोस्टिक सेंटर के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने के लिए भी कहा. जांच के दौरान आयोग को पता चला कि डायग्नोस्टिक सेंटर ने मेडिकल टेस्ट रिपोर्ट पर एक डॉक्टर के हस्ताक्षर का इस्तेमाल किया था, जो दो साल पहले ही केंद्र छोड़ चुका था.

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