कोलकाता. बढ़ती जनसंख्या और शहरीकरण के मद्देनजर गांवों के साथ-साथ शहरी क्षेत्रों में भी वैकल्पिक खेती को अपनाने की आवश्यकता है. देशभर में शहरीकरण के चलते जंगलों का विनाश हो रहा है, जिससे कृषि भूमि का दायरा घटता जा रहा है. वहीं, जनसंख्या के अनुपात में खाद्यान्न उत्पादन में भी गिरावट का खतरा मंडरा रहा है. ऐसी स्थिति में शहरी और ग्रामीण, दोनों क्षेत्रों के लोगों को अपनी उपलब्ध जगहों, छत, लॉन, गमलों या घर के किसी भी खाली हिस्से में वैकल्पिक खेती करनी चाहिए. इससे न सिर्फ लोगों को मिलावटी खाद्य पदार्थों से मुक्ति मिलेगी, बल्कि बाजार पर निर्भरता भी कम होगी. ये बातें राज्य के पूर्व कृषि मंत्री व डीआरसीएससी के प्रमुख पूर्णेंदु बसु ने रविवार को न्यूटाउन स्थित बांग्ला जैविक बाजार में विकास अनुसंधान संचार व सेवा केंद्र द्वारा आयोजित एक विचार-विमर्श बैठक के दौरान कहीं. बैठक का संचालन राज्यसभा सांसद डोला सेन ने किया. इस अवसर पर कृषि वैज्ञानिकों, खाद्य व स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने भी अपने विचार रखे. परिचर्चा में खाद्य पदार्थों में मिलाये जा रहे जहरीले रासायनिक रंगों और उनके दुष्प्रभावों पर भी विस्तार से चर्चा हुई. वक्ताओं ने कहा कि बच्चों और अगली पीढ़ी के स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए खाने की चीजों को पूरी तरह से विषमुक्त बनाना समय की मांग है. साथ ही विशेषज्ञों ने यह भी कहा कि लोगों को बहुराष्ट्रीय कंपनियों के रेडीमेड उत्पादों पर निर्भरता छोड़ कर घर के बने भोजन को प्राथमिकता देनी चाहिए.
संबंधित खबर
और खबरें