कोलकाता. राज्य में कई अवैध निवेश कंपनियों अर्थात चिटफंड कंपनियों के जमाकर्ताओं का पैसा लौटाने के लिए कलकत्ता हाइकोर्ट की ओर से गठित दो अलग-अलग कमेटियां अब सवालों के घेरे में आ गयी हैं. हाइकोर्ट द्वारा गठित जस्टिस तालुकदार की कमेटी यह ब्योरा नहीं दे पायी है कि पिछले 10 सालों में कितनी कंपनियों की संपत्ति जब्त की गयी, उसमें से कितनी बेची गयीं और सबसे बड़ी बात यह कि किस कंपनी के कितने जमाकर्ताओं को कितना पैसा लौटाया गया. मंगलवार को मामले की सुनवाई के दौरान जस्टिस राजर्षि भारद्वाज और जस्टिस अपूर्व सिन्हा रॉय की खंडपीठ ने कमेटी के कामकाज पर नाराजगी जाहिर की है. खंडपीठ ने मामले की अगली सुनवाई के दिन कमेटी के वकील को कोर्ट की मांग के मुताबिक विस्तृत रिपोर्ट पेश करने का आदेश दिया है. वहीं, रोजवैली के जमाकर्ताओं का पैसा लौटाने के लिए गठित जस्टिस दिलीप सेठ की कमेटी की भूमिका से पर भी खंडपीठ ने सवाल खड़े किये हैं. फिलहाल खंडपीठ ने आदेश दिया है कि कमेटी हाइकोर्ट के आदेश के बिना कोई फैसला नहीं लेगी. वे रोजवैली की कोई संपत्ति नहीं बेच पायेंगे और न ही किसी शेयर का आदान-प्रदान कर पायेंगे. कमेटी ने आज यह भी माना है कि वे कोर्ट के आदेशानुसार कार्रवाई करेंगे. जस्टिस राजर्षि भारद्वाज ने मंगलवार को कहा कि कमेटी द्वारा सौंपी गयी रिपोर्ट में कई खामियां हैं. अगली सुनवाई में कमेटी को लिखित में बताना होगा कि कोर्ट के आदेश के बिना कंपनी बाहरी लोगों के जरिये कैसे कारोबार चला रही है. इस बारे में अदालत ने कमेटी से विस्तृत रिपोर्ट तलब की है.
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