बचपन में ही साथ छोड़ चुकी मां को कितना मिले भरण-पोषण, हाइकोर्ट ने एसडीओ से मांगी रिपोर्ट

यह मामला तब सामने आया, जब एक वृद्ध मां ने अपने बेटे से भरण-पोषण की मांग करते हुए अदालत में याचिका दायर की.

By GANESH MAHTO | July 24, 2025 1:37 AM
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भले ही मां साथ न रहती हो, पर बेटे को भरण-पोषण की न्यूनतम जिम्मेदारी लेनी होगी : हाइकोर्ट कोलकाता. कलकत्ता हाइकोर्ट की न्यायाधीश अमृता सिन्हा ने बुधवार को एक महत्वपूर्ण मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि भले ही मां बेटे के साथ न रहती हो, लेकिन वृद्ध मां का भरण-पोषण बेटे को करना ही होगा. पुत्र इससे इनकार नहीं कर सकता. यह मामला तब सामने आया, जब एक वृद्ध मां ने अपने बेटे से भरण-पोषण की मांग करते हुए अदालत में याचिका दायर की. याचिकाकर्ता की मां बचपन में ही उसे छोड़ कर चली गयी थी और उसके बाद उन्होंने कभी बेटे की सुध नहीं ली. बेटे का अपनी मां से पिछले 15 साल से कोई संपर्क नहीं है. बुधवार को मामले की सुनवाई करते हुए न्यायाधीश अमृता सिन्हा ने कहा कि मां को कितना भरण-पोषण मिलना चाहिए, यह एसडीओ तय करेंगे और इसकी रिपोर्ट अदालत में पेश करेंगे. इसके बाद ही हाइकोर्ट मामले में अपना फैसला सुनायेगा. अदालत ने बुधवार को मामले का निबटारा करते हुए नदिया जिले के कल्याणी के उप-विभागीय मजिस्ट्रेट (एसडीओ) को यह निर्देश देते हुए कहा कि एसडीओ को पांच दिसंबर तक मां-बेटे के मामले पर फैसला लेना होगा. एसडीओ ने इस संबंध में अदालत में एक समस्या का भी उल्लेख किया. उनके अनुसार, बेटा अपनी मां के भरण-पोषण के लिए कितना पैसा देगा, यह बेटा ही बता सकता है, बहू नहीं. लेकिन इस मामले में बेटा उपलब्ध नहीं है. वह ड्यूटी के सिलसिले में बाहर है. इस पर न्यायाधीश ने पूछा कि बेटा कब वापस लौटेगा? उनके वकील ने कहा कि बेटा नवंबर के अंत तक लौट आयेगा. इसके बाद जज ने कहा कि वृद्धा का बेटा वर्चुअल माध्यम से एसडीओ से संपर्क कर सकता है. उस स्थिति में एसडीओ वहीं उससे बात कर मामले का निबटारा कर देंगे. बेटे का इमेल आइडी और फोन नंबर भी ले लिया गया है. अगर वर्चुअल माध्यम से संवाद नहीं हो पाता है, तो नवंबर में बेटे के लौटने पर एसडीओ उससे बात कर निर्णय लेंगे. बेटे के वकील ने अदालत में तर्क दिया कि जिस मां ने उसे जरूरत के वक्त छोड़ दिया और कभी मुड़ कर नहीं देखा, उसका अब भरण-पोषण करना उचित नहीं है. न्यायमूर्ति अमृता सिन्हा की पीठ ने मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि अदालत मां और बेटे के बीच के व्यक्तिगत विवाद पर कोई टिप्पणी नहीं करेगी. हालांकि, उन्होंने स्पष्ट किया कि बेटे का अपनी मां के प्रति न्यूनतम कर्तव्य है. चूंकि बेटा आर्थिक रूप से संपन्न है और मां को मदद की जरूरत है, इसलिए अदालत का मानना है कि बेटे को मां के भोजन और इलाज का बुनियादी खर्च उठाना चाहिए.

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