बच्ची का दादा-दादी के साथ रहना भी जरूरी

वे दादा-दादी से कहानियां सुनते हैं. दादा-दादी अपने जीवन के अनुभवों को भी उनके साथ साझा करते हैं.

By GANESH MAHTO | May 28, 2025 12:04 AM
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हाइकोर्ट ने दांपत्य जीवन में विवाद के मामले में सुनाया महत्वपूर्ण फैसला कोलकाता. कलकत्ता हाइकोर्ट ने दांपत्य जीवन में विवाद से जुड़े एक मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि बच्चों का माता-पिता की तरह दादा-दादी के साथ रहना भी जरूरी है. वे दादा-दादी से कहानियां सुनते हैं. दादा-दादी अपने जीवन के अनुभवों को भी उनके साथ साझा करते हैं. इससे उनके परस्पर संबंध मजबूत होते हैं और बच्चों पर इसका सकारात्मक प्रभाव पड़ता है. कलकत्ता हाइकोर्ट के न्यायाधीश हिरण्मय भट्टाचार्य ने यह फैसला ऋषि अग्रवाल बनाम दीपिका अग्रवाल (खेतान) के बीच चल रहे तलाक मामले के बीच उनकी बेटी को पालने के मामले की सुनवाई के दौरान दिया. बताया गया है कि पति-पत्नी की शादी के बाद ही खटपट शुरू हो गयी थी. पत्नी ससुराल से अलग होकर अपनी बेटी के साथ दिल्ली चली गयी. इसके बाद यह मामला पहले अलीपुर कोर्ट और फिर हाइकोर्ट पहुंचा. न्यायमूर्ति हिरण्मय भट्टाचार्य ने यह आदेश पारित करते हुए कहा कि हमारे समाज में दादा-दादी अपनी संतान से अधिक पोते-पोतियों के प्रति भावनात्मक लगाव रखते हैं. न्यायमूर्ति ने कहा कि माता-पिता के बीच तारतम्य नहीं होने, आपसी असहमति होने की स्थिति में बच्चा अपनी जड़ों से कट जाता है, इसलिए उसकी परवरिश में दादा-दादी की भूमिका अनिवार्य है, जिससे उसमें पारिवारिक संबंधों का ज्ञान बढ़े. बच्ची के पिता की ओर से पैरवी करते हुए अधिवक्ता उदय गुप्ता ने अदालत में पक्ष रखते हुए कहा कि मां की जिद पर छोटी बच्ची को पैतृक परिवार से अलग रखने से उसमें पारिवारिक संस्कारों का बीजारोपण नहीं हो पायेगा, जिसे अदालत ने महत्वपूर्ण माना. पिछले दिनों बेंगलुरु के अतुल सुभाष प्रकरण में लाइव आत्महत्या के पीछे भी अपने बच्चे से न मिल पाने की पीड़ा प्रमुख थी.

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