पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने सोमवार को बोलपुर से राज्यव्यापी ‘भाषा आंदोलन’ की शुरुआत की और भाजपा पर बंगाली पहचान को मिटाने का प्रयास करने का आरोप लगाया. ममता बनर्जी ने राष्ट्रीय नागरिक पंजी (एनआरसी) का विरोध करने, प्रवासियों की रक्षा करने और ‘भाषाई आतंकवाद’ को रोकने का संकल्प लिया.
ममता बनर्जी ने तृणमूल कांग्रेस समर्थकों और वापस लौटे बंगाली प्रवासियों की एक रैली का नेतृत्व करते हुए कहा, ‘हम भाषाई आतंक के नाम पर हमारे अस्तित्व को खतरे में डालने की इस साजिश और पिछले दरवाजे से एनआरसी लागू करने के प्रयास को रोकेंगे.’
ममता बनर्जी ने उत्साहित भीड़ का अभिवादन करते हुए और टैगोर का चित्र लिए हुए टूरिस्ट लॉज चौराहे से जामबनी बस स्टैंड तक तीन किलोमीटर लंबा विरोध मार्च निकाला. इस दौरान उनके साथ मंत्री, पार्टी के वरिष्ठ नेता और स्थानीय निर्वाचित प्रतिनिधि भी मौजूद थे.
संयुक्त राष्ट्र ने बाद में उस संघर्ष की स्मृति में 21 फरवरी को अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस घोषित किया.
बनर्जी ने बंगाल की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक विरासत का उल्लेख करते हुए लोगों से आग्रह किया कि वे अपनी अस्मिता (गर्व), मातृभाषा और मातृभूमि को कभी न भूलें.
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ममता बनर्जी ने कहा, ‘मैं ऐसे राष्ट्र की कल्पना को स्वीकार नहीं करती जो सिर्फ बांग्ला बोलने के कारण प्रवासी की हत्या कर दे.’ मुख्यमंत्री ने कथित तौर पर जारी भेदभाव पर सवाल उठाते हुए कहा कि बांग्ला दुनिया में पांचवीं और एशिया में दूसरी सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है. उन्होंने कहा कि फिर भी, बंगालियों को विभिन्न राज्यों में प्रताड़ित किया जा रहा है. यह नफरत क्यों? अगर बंगाल अन्य राज्यों से आये 1.5 करोड़ प्रवासी श्रमिकों को स्वीकार कर सकता है और उन्हें आश्रय दे सकता है, तो आप अन्यत्र काम करने वाले 22 लाख बंगाली प्रवासियों को क्यों नहीं स्वीकार कर सकते?
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