एजेंसियां, नयी दिल्ली
इससे पहले पीठ ने राज्य सरकार के अधिवक्ता कपिल सिब्बल की दलीलों पर संज्ञान लेते हुए कहा: यह आश्चर्यजनक है. उच्च न्यायालय ऐसा आदेश कैसे दे सकता है? आरक्षण कार्यपालिका के कार्य का हिस्सा है. कपिल सिब्बल ने उच्च न्यायालय के आदेश पर रोक लगाने का अनुरोध करते हुए कहा कि इससे शिक्षकों और अन्य की नियुक्तियां रुक गयी हैं. प्रतिवादियों की ओर वरिष्ठ अधिवक्ता रंजीत कुमार और गुरु कृष्णकुमार ने उच्च न्यायालय के आदेश पर रोक लगाने की याचिका का विरोध किया. कृष्णकुमार ने दलील दी कि राज्य कार्यकारी आदेश के तहत आरक्षण देने के लिए स्वतंत्र है, लेकिन कुछ निर्णय ऐसे भी हैं, जिनमें कहा गया है कि यदि इसे नियंत्रित करने वाला विधायी ढांचा है, तो कानून की कठोरता का पालन किया जाना चाहिए. उन्होंने कहा कि नयी ओबीसी सूची बिना किसी आंकड़े के तैयार की गयी है.
क्या कहा अदालत ने
सीजेआइ ने कहा: हम इस पर नोटिस जारी करेंगे. यह (ओबीसी उपजातियों की नयी सूची पर रोक) आश्चर्यजनक है. उच्च न्यायालय इस तरह कैसे रोक लगा सकता है? आरक्षण कार्यपालिका के कार्यों का हिस्सा है. इंदिरा साहनी (मंडल फैसले) से ही यह स्थापित कानून है, स्थिति यह है कि कार्यपालिका ऐसा कर सकती है. पीठ ने कहा कि आरक्षण देने के लिए कार्यकारी निर्देश पर्याप्त हैं और इसके लिए कानून बनाना आवश्यक नहीं है. न्यायमूर्ति गवई ने सवाल किया: हम आश्चर्यचकित हैं. उच्च न्यायालय की क्या दलील है?डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है