अगले साल होने वाले राज्य विधानसभा चुनाव के मद्देनजर भाजपा ने अपनी प्रदेश इकाई को आंतरिक कलह, जमीनी स्तर पर असंतोष और बंगाली मतदाताओं के साथ ‘सांस्कृतिक अलगाव’ के विमर्श से बाहर निकालने के लिए मृदुभाषी, आरएसएस के वफादार व पार्टी के दिग्गज नेता शमिक भट्टाचार्य पर दांव लगाया है. लेकिन, एक विशिष्ट बंगाली ‘भद्रलोक’ शमिक भट्टाचार्य के कार्यभार संभालने के साथ ही उनके सामने एक प्रमुख चुनौती यह है कि क्या उनके नेतृत्व में प्रदेश इकाई एक उदारवादी, समावेशी हिंदुत्व की राह पर चलती है या फिर भाजपा के अन्य नेताओं की भांति समर्थित उग्र और कट्टर रुख को जारी रखती है.
नव निर्वाचित अध्यक्ष ने संगठन को मजबूत करने का लिया है संकल्प :
शमिक भट्टाचार्य ने पदभार ग्रहण करने के बाद कहा : पार्टी किसी भी व्यक्ति से ऊपर है. मेरा ध्यान संगठन को मजबूत करने और सभी स्तरों पर संपर्क स्थापित करने पर होगा. पश्चिम बंगाल को तृणमूल कांग्रेस द्वारा अपनायी जा रही हिंसा, भ्रष्टाचार और सांप्रदायिकता की राजनीति के मद्देनजर बेहतर विकल्प की जरूरत है. श्री भट्टाचार्य ने हाल ही में कहा था : भाजपा की लड़ाई राज्य के अल्पसंख्यकों के खिलाफ नहीं है. अल्पसंख्यक परिवारों के युवा लड़के जो पत्थर लेकर घूम रहे हैं- हम उनसे पत्थर छीनकर उन्हें किताबें देना चाहते हैं.
क्या मानना है राजनीतिक विश्लेषकों का
हालांकि, राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि केवल बयानबाजी ही पर्याप्त नहीं होगी. उनका मानना है कि बंगाल में भाजपा आंतरिक और चुनावी दोनों ही तरह की गंभीर चुनौतियों का सामना कर रही है. भट्टाचार्य ने भाजपा को एक समावेशी शक्ति के रूप में स्थापित करने का प्रयास किया है, जो इसके कुछ नेताओं के तीखे तेवरों से अलग है. गौरतलब है कि बंगाल में अल्पसंख्यक मतदाताओं की संख्या लगभग 30 प्रतिशत है और वे 294 विधानसभा सीटों में से लगभग 120 पर निर्णायक भूमिका निभा सकते हैं. राजनीतिक विश्लेषक मैदुल इस्लाम ने बताया कि शमिक भट्टाचार्य का संदेश बंगाल में भाजपा की स्थिति में बदलाव का संकेत देता है. उन्होंने कहा कि शमिक भट्टाचार्य ने जो कहा ””भाजपा अल्पसंख्यकों की दुश्मन नहीं है और बहुलवाद की रक्षा करना चाहती है”” वह बंगाल इकाई के लिए कुछ नयी है और शुभेंदु अधिकारी व अन्य लोगों ने जो कहा है, उसके बिलकुल विपरीत है. यह देखना अभी बाकी है कि भट्टाचार्य उदारवादी हिंदुत्व को पार्टी का प्रमुख विमर्श बना पाते हैं या नहीं. तृणमूल लंबे समय से भाजपा पर बंगाल के सांस्कृतिक लोकाचार से अलग ‘हिंदी-हिंदू-हिंदुस्तान’ मॉडल को बढ़ावा देने का आरोप लगाती रही है. मैदुल इस्लाम का कहना है : भट्टाचार्य की मृदुभाषी, विद्वान छवि, बंगाली साहित्य में महारत और आरएसएस की पृष्ठभूमि उन्हें वैचारिक केंद्र और व्यापक बंगाली मतदाताओं के बीच एक सेतु के रूप में स्थापित करती है. हालांकि, अकसर ‘बाहरी ताकत’ के रूप में करार दी जाने वाली पार्टी के लिए स्थानीय स्तर पर जुड़ाव हासिल करना आसान नहीं होगा.
बंगाल की संस्कृति पर किसी का एकाधिकार नहीं : सुकांत
हालांकि, भाजपा प्रदेश इकाई के पूर्व अध्यक्ष सुकांत मजूमदार ने इस तरह की आलोचना को खारिज कर दिया. उन्होंने कहा : बंगाली संस्कृति पर किसी का एकाधिकार नहीं है. भाजपा हर उस बंगाली का प्रतिनिधित्व करती है, जो विकास और सम्मान चाहता है. गौरतलब है कि श्री भट्टाचार्य के सामने एक और महत्वपूर्ण मुद्दा अंदरूनी कलह है. 2021 के विधानसभा चुनाव में हार के बाद से, भाजपा के पुराने नेताओं और तृणमूल के दलबदलुओं के बीच गुटबाजी ने संगठन की एकता को कमजोर किया है.
डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है