बिहार में एसआइआर की कवायद ‘नोटबंदी’ की तरह ही है ‘वोटबंदी’

श्री भट्टाचार्य ने उपरोक्त बातें यहां प्रेस क्लब में आयोजित संवाददाता सम्मेलन के दौरान कही.

By GANESH MAHTO | July 12, 2025 1:43 AM
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कहा : बंगाल के लोगों को भी सतर्क रहने की है जरूरत कोलकाता. बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआइआर) को लेकर निर्वाचन आयोग की कवायद को लेकर भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माले) लिबरेशन के महासचिव दीपंकर भट्टाचार्य ने कहा कि यह एक तरह ‘नोटबंदी’ की तरह ‘वोटबंदी’ जैसी है. बिहार में एसआइआर की कवायद निर्वाचन आयोग के सर्कुलर में दिये गये नियमों व शर्तों के अनुसार हुई तो, राज्य के 3.5 करोड़ से ज्यादा मतदाता मतदान से वंचित हो सकते हैं. श्री भट्टाचार्य ने उपरोक्त बातें यहां प्रेस क्लब में आयोजित संवाददाता सम्मेलन के दौरान कही. वामपंथी नेता ने बिहार में निर्वाचन आयोग द्वारा उठाये कदम का जिक्र करते हुए कहा कि पश्चिम बंगाल के लोगों को भी सतर्क रहने की जरूरत है. अगले वर्ष ही बंगाल में व अन्य कुछ राज्यों में विधानसभा चुनाव होनेवाले हैं. ऐसे में बिहार की तरह बंगाल के लोगों को भी अपनी नागरिकता साबित करने के लिए मशक्कत करनी पड़ सकती है. वामपंथी नेता भट्टाचार्य ने यह भी आरोप लगाया कि बिहार में यह कदम ‘नोटबंदी’ की तरह यह ‘वोटबंदी’ है जिस पर विपक्ष के सवालों का निर्वाचन आयोग ने जवाब नहीं दिया. ऐसा पहली बार देखा जा रहा है कि मतदाताओं को यह साबित करने के लिए कहा गया है कि वे भारत के नागरिक हैं और मतदाता है. ऐसे में इस पूरी कवायद में बिहार के आठ करोड़ लोगों को अपनी नागरिकता साबित करनी होगी. नागरिकता के प्रमाण के लिए लोगों से 10वीं की मार्कशीट, जन्म प्रमाणपत्र, जमीन के कागजात मांगे जा रहे हैं. इससे बिहार के मतदाताओं का एक बड़ा वर्ग लगभग 3.5 करोड़ मतदाता सूची से बाहर हो सकते हैं. उनका लोकतांत्रिक अधिकार एक तरह से छिन जायेगा. उनका आरोप यह भी है कि मतदान के सार्वभौमिक अधिकार के दायरे को सीमित करने की कोशिश हो रही है. मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण के निर्वाचन आयोग के आदेश को चुनौती देते हुए इसे रद्द करने का अनुरोध करते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं दायर की गयी हैं, जिसकी सुनवाई गत गुरुवार को अदालत में हुई थी. कोर्ट के प्राथमिक निर्देश को लेकर श्री भट्टाचार्य ने कहा कि “सुप्रीम कोर्ट ने अपने दिये निर्देश में बिहार में निर्वाचन आयोग द्वारा अचानक शुरू किये गये एसआइआर अभियान में निहित मूलभूत संवैधानिक और कानूनी विसंगतियों और अनियमितताओं, बिहार के आम मतदाताओं द्वारा अनुभव की जा रही समस्याओं और असुविधाओं का संज्ञान भी लिया है, जो मतदाताओं की मूल आशंकाओं और आपत्तियों की पुष्टि करता है. कोर्ट ने एसआइआर के दौरान आधार कार्ड, मतदाता पहचान पत्र और राशन कार्ड पर दस्तावेज के तौर पर विचार करने की बात कही है.” उन्होंने बांग्लाभाषी मजदूरों व कामगारों को ओड़िशा में हिरासत में रखे जाने की निंदा करते हुए भाजपा की आलोचना भी की.

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