हुगली. चंदननगर के रथ की स्थापना का इतिहास अत्यंत रोचक है. सन 1776 ई में चंदननगर के महात्मा यादवेंदु घोष ने अपने घर से सटे बगीचे में स्थित एक नीम के पेड़ की लकड़ी से सुंदर और कलात्मक रथ का निर्माण कराया था. जनसाधारण की भागीदारी और उत्साह के कारण चंदननगर का रथ आज भी अपनी परंपरा और गौरव को अक्षुण्ण बनाए हुए है. गुरुवार सुबह जिलाधिकारी मुक्ता आर्य, चंदननगर के पुलिस कमिश्नर अमित पी ज्वालगी, एसडीओ विष्णु दास, एसीपी शुभेंदु बनर्जी, एसडीआइसीओ स्वर्णाली दास सहित अन्य गणमान्य अधिकारी की उपस्थिति में रथयात्रा निकाली जायेगी. शाम को तालेगांव पहुंचेगा. यह रथ पूरी तरह से लोहे से निर्मित है. लकड़ी का रथ कमजोर होने के बाद 1962 में चंदननगर लक्ष्मीगंज रथ संचालन समिति, गोंदलपाड़ा जूट मिल, आम नागरिकों के आर्थिक सहयोग और मेसर्स ब्रेथवेट एंड कंपनी लिमिटेड की सहायता से लोहे का रथ तैयार किया गया. यह रथ पुराने रथ की ही शैली में निर्मित है और इसका अनुमानित वजन 60 टन है. रथ की ऊंचाई 40 फीट, लंबाई और चौड़ाई 22 फीट है. यह रथ चार मंजिला है और इसमें कुल 14 पहिये हैं, जिनमें प्रत्येक का वजन एक टन है. रथ की पहली मंजिल पर चारों कोनों में चार महिलाओं की मूर्तियां हैं. दूसरी मंजिल पर दो तेजस्वी सफेद घोड़े रथ को खींच रहे हैं और साथ में सारथी हैं. तीसरी मंजिल पर चार द्वारपाल पूर्व में इंद्र, पश्चिम में वरुण, उत्तर में कुबेर और दक्षिण में यमराज विराजमान हैं. चौथी और अंतिम मंजिल के मध्य में महाप्रभु श्रीश्री जगन्नाथ देव, दक्षिण में बहन सुभद्रा और बायीं ओर बलराम स्थापित हैं.
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