भारत और हिंदी. हिंदी महज एक भाषा नहीं है. यह हमारी संवेदना और संस्कार की प्रतीक है. 14 सितंबर को हिंदी दिवस के रूप में हम हिंदी की महत्ता को सलाम करते हैं. दरअसल, हिंदी को राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने हमेशा सर्वोच्च स्थान दिया था. राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने साल 1918 में हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने की बात की थी. महात्मा गांधी ने हिंदी साहित्य सम्मेलन के दौरान प्रस्ताव दिया था. गांधीजी ने हिंदी को जनमानस की भाषा बताया था. वो आजीवन हिंदी भाषा से जुड़े रहे थे. यहां एक वाकया का जिक्र करना बेहद जरूरी है. वो वाकया महात्मा गांधी की बनारस यात्रा से जुड़ा है. वैसे तो महात्मा गांधी कई बार बनारस हिंदू विश्वविद्यालय गए थे. एक बार महात्मा गांधी ने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में अपने संबोधन के दौरान हिंदी भाषा की गरिमा और महत्व को दिखाया था. मंच पर महात्मा गांधी ने हिंदी में भाषण देना शुरू किया. उन्हें अंग्रेजी में भाषण देने के लिए कहा गया था. सभी भाषण अंग्रेजी में हो रहे थे. खुद राष्ट्रपिता महात्मा गांधी भी हैरान थे. उन्हें दुख भी था कि आखिर कोई हिंदी में क्यों भाषण नहीं दे रहा है. जब गांधीजी भाषण देने के लिए खड़े हुए तो उन्होंने हिंदी में बोलना शुरू किया था. उनके शब्द अपेक्षा के विपरीत कठोर थे. हिंदी में बापू को भाषण देता देख मौके पर मौजूद लोग नाराज हो गए. सभी ने अंग्रेजी में भाषण दिया और जब बापू ने बोलना शुरू किया तो हिंदी भाषा को चुना.
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