इस चुनाव में एक दिलचस्प मोड़ तब आया जब अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अपने बयान में कहा कि कनाडा को अमेरिका का 51वां राज्य बना दिया जाना चाहिए. इसके अलावा उन्होंने कनाडा के लोगों से “मजबूत नेता” को चुनने की अपील की. ट्रंप के इस हस्तक्षेप ने कनाडा में राष्ट्रवादी भावनाओं को भड़काया और यह भावना लिबरल पार्टी के पक्ष में चली गई. यह कहना गलत नहीं होगा कि ट्रंप की इस टिप्पणी ने चुनाव की दिशा बदल दी.
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पूर्व लिबरल जस्टिस मिनिस्टर डेविड लैमैटी ने कहा कि कुछ महीने पहले पार्टी की स्थिति बेहद कमजोर थी, लेकिन मार्क कार्नी के नेतृत्व में स्थिति ने करवट ली और पार्टी अब सरकार बनाने के कगार पर है.
कनाडा की प्रमुख विपक्षी पार्टी कंजर्वेटिव पार्टी के नेता पियरे पॉइलीएवर ने इस चुनाव को पूर्व प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो की नीतियों पर जनमत संग्रह बनाने की कोशिश की थी. ट्रूडो का कार्यकाल महंगाई, आवास संकट और जन असंतोष से घिरा रहा, जिससे उनके खिलाफ माहौल बन गया था. लेकिन ट्रंप के कनाडा-विरोधी बयानों, ट्रूडो के इस्तीफे और मार्क कार्नी के उदय ने चुनावी समीकरण पूरी तरह से बदल दिए.
कार्नी ने चुनाव प्रचार के दौरान कहा था, “अमेरिका हमें बांटना चाहता है और यह कोई साधारण बयान नहीं है बल्कि हमारी संप्रभुता पर सीधा हमला है.” दूसरी ओर, कंजर्वेटिव नेता पॉइलीएवर ने भी मतदाताओं से बदलाव के नाम पर वोट मांगे, लेकिन ट्रंप की शैली में चुनाव प्रचार करने और उनके साथ घनिष्ठ संबंध रखने की वजह से जनता में उनकी छवि कमजोर पड़ी.
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इस बार चुनाव में जबरदस्त मतदाता उत्साह देखने को मिला. चुनाव आयोग के अनुसार, कुल 7.3 मिलियन लोगों ने अपने मताधिकार का उपयोग किया, जो कि 2021 के चुनावों की तुलना में 25 प्रतिशत अधिक है. इस रिकॉर्ड मतदान ने भी लिबरल पार्टी को बढ़त दिलाने में भूमिका निभाई.