Chicken Neck: भारत की ‘गर्दन’ पर खतरा! क्या है ‘चिकन नेक’?   

Chicken Neck: सिलीगुड़ी कॉरिडोर, जिसे 'चिकन नेक' कहा जाता है, भारत का रणनीतिक रूप से बेहद अहम क्षेत्र है. बांग्लादेश के कार्यवाहक प्रधानमंत्री युनूस के बयान के बाद यह फिर चर्चा में है. यह कॉरिडोर पूर्वोत्तर राज्यों को देश के बाकी हिस्सों से जोड़ता है.

By Aman Kumar Pandey | April 5, 2025 4:03 PM
an image

Chicken Neck: हाल ही में बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के मुखिया मोहम्मद युनूस के एक बयान ने भारत के सिलीगुड़ी कॉरिडोर को लेकर फिर से चर्चाओं को हवा दे दी है. युनूस के इस बयान पर असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा ने तीखी प्रतिक्रिया दी है और इसे हल्के में न लेने की बात कही है. सिलीगुड़ी कॉरिडोर, जिसे ‘चिकन नेक’ भी कहा जाता है, भारत के लिए न सिर्फ भौगोलिक रूप से बल्कि रणनीतिक दृष्टिकोण से भी बेहद महत्वपूर्ण है. आइए विस्तार से समझते हैं कि यह इलाका क्यों इतना अहम है और मौजूदा विवाद की वजह क्या है.

युनूस का बयान और उसका असर

बांग्लादेश के कार्यवाहक प्रधानमंत्री मोहम्मद युनूस ने हाल ही में चीन की यात्रा के दौरान एक बयान में कहा कि भारत के पूर्वोत्तर राज्य, जिन्हें ‘सेवन सिस्टर्स’ कहा जाता है, लैंडलॉक्ड हैं यानी उनकी सीधी समुद्री पहुंच नहीं है. उन्होंने कहा कि बांग्लादेश इन राज्यों के लिए समुद्र का एकमात्र रास्ता है और इसलिए चीन के लिए यह एक निवेश का अच्छा अवसर हो सकता है.

यह बयान भारत में सामरिक हलकों में चिंता का कारण बना. असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा ने साफ कहा कि इस बयान को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता. उन्होंने इसे भारत की क्षेत्रीय सुरक्षा और भू-राजनीतिक संतुलन के लिए गंभीर संकेत माना.

इसे भी पढ़ें: गटर में किताब, चेहरे पर मुस्कान, वीडियो देख कहेंगे वाह रे बचपना तुझे सलाम 

क्या है सिलीगुड़ी कॉरिडोर?

सिलीगुड़ी कॉरिडोर पश्चिम बंगाल के उत्तरी हिस्से में स्थित एक पतली सी पट्टी है जो भारत के मुख्य भूभाग को उसके आठ पूर्वोत्तर राज्यों से जोड़ती है — अरुणाचल प्रदेश, असम, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नागालैंड, सिक्किम और त्रिपुरा. यह कॉरिडोर दार्जिलिंग और जलपाईगुड़ी जिलों से होकर गुजरता है और इसकी चौड़ाई सबसे कम जगह पर मात्र 22 किलोमीटर है.

यह भौगोलिक संरचना मुर्गी की गर्दन जैसी लगती है, इसलिए इसे आम बोलचाल में ‘चिकन नेक’ कहा जाता है. यही पतली पट्टी भारत के पूर्वोत्तर को शेष भारत से जोड़ने का एकमात्र सीधा रास्ता है.

भौगोलिक और रणनीतिक महत्व

यह इलाका चार देशों — भारत, नेपाल, बांग्लादेश और भूटान — के बीच की सीमा के नजदीक स्थित है. यही कारण है कि इसे रणनीतिक दृष्टिकोण से बेहद संवेदनशील माना जाता है. सिलीगुड़ी कॉरिडोर के आसपास का इलाका डोकलाम ट्राई-जंक्शन के भी पास है, जहां पहले भारत और चीन के बीच सैन्य टकराव हो चुका है.

इस कॉरिडोर से गुजरने वाले राष्ट्रीय राजमार्ग और रेल लाइनें पूर्वोत्तर को देश के बाकी हिस्सों से जोड़ती हैं. यह मार्ग भारतीय सेना के लिए भी काफी अहम है क्योंकि यहां से सेना के साजो-सामान और जवानों की आपूर्ति होती है.

इसे भी पढ़ें: अमेरिकी टैरिफ बना वरदान! चीन को मिला सोने का भंडार

विकल्प के तौर पर कालादान प्रोजेक्ट

हालांकि सिलीगुड़ी कॉरिडोर की संवेदनशीलता को देखते हुए भारत सरकार विकल्प तलाशने में भी जुटी है. लेफ्टिनेंट जनरल संजय कुलकर्णी (सेवानिवृत्त), जो भारतीय सेना में डीजी इन्फैंट्री रह चुके हैं, के अनुसार भारत पहले से ही कालादान मल्टी-मॉडल ट्रांजिट प्रोजेक्ट पर काम कर रहा है. यह परियोजना कोलकाता से म्यांमार के सितवे बंदरगाह तक समुद्री रास्ते, फिर कालादान नदी और उसके बाद मिजोरम तक सड़क मार्ग से जुड़ी हुई है. हालांकि इस परियोजना की रफ्तार धीमी है, लेकिन यह भविष्य में सिलीगुड़ी कॉरिडोर पर निर्भरता को कम कर सकता है.

सिलीगुड़ी कॉरिडोर सिर्फ एक भौगोलिक रास्ता नहीं है, बल्कि भारत की सुरक्षा, संप्रभुता और पूर्वोत्तर के विकास से जुड़ा अहम हिस्सा है. बांग्लादेश के अंतरिम प्रधानमंत्री के बयान से यह स्पष्ट होता है कि इस इलाके को लेकर वैश्विक स्तर पर भी दिलचस्पी है, खासकर चीन जैसी महाशक्ति की. ऐसे में भारत के लिए जरूरी है कि वह अपनी सामरिक तैयारियों को मजबूत करे और विकल्पों पर काम तेज करे, ताकि किसी भी आपात स्थिति में देश की एकता और सुरक्षा पर कोई आंच न आए.

संबंधित खबर
संबंधित खबर और खबरें
होम E-Paper News Snaps News reels
Exit mobile version