कोरोना वायरस से पूरी दुनिया लड़ रही है. सभी देश इस वायरस से निपटने के लिए दवा की खोज में लगे हैं. ऐसे में अगर कोई यह दावा करे कि हमने कोरोना वायरस से निपटने का तरीका खोज लिया है तो ? इजरायल के रक्षा मंत्री नफताली बेन्नेट ने सोमवार को दावा किया है कि हमारे देश के वैज्ञानिकों ने कोरोना महामारी से निपटने का तरीका खोज लिया है. यह तरीका है एंटीबॉडीज का.
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जानिए क्या होता है वैक्सीन और एंटीबॉडी के इलाज में अंतर
पूरी दुनिया में चर्चा है कि वैज्ञानिक कोरोना वायरस का वैकसीन तैयार करने में लगे हैं. वहीं एडवांस मेडिकल साइंस पर काम करने वाले वैज्ञानिक कोरोना वायरस से लड़ने के लिए एंटीबॉडी बनाने की दिशा में काम कर रहे हैं. आइए जानते हैं कि दोनों में क्या फर्क होता है और ये शरीर पर काम कैसे करता है.
कैसे काम करता है वैक्सीन
वैक्सीन को पिछले कई दशकों का सबसे बेहतरीन खोज माना गया है क्योंकि इसने पूरी दुनिया ने पोलिया, खसरा जैसे कई संक्रामक रोगों को पूरी तौर पर खत्म करने और आने वाली पीढ़ी को बचाने का काम किया है. दरअसल ये ड्रॉप के माध्यम से या इंजेक्शन के माध्यम से मानव शरीर में डाला जाता है. इसके बाद हमारा शरीर खुद ब खुद रोगप्रतिरोधक क्षमता उस वायरस के खिलाफ तैयार कर लेता है और ये हमारे शरीर को उस वायरस से सालों साल तक सुरक्षित करता है. यानी वैकसीन आपके ही शरीर के इम्यून सिस्टम की मदद लेता है किसी वायरस से लड़ने में. इसमें किसी तरह के इंफेक्शन का खतरा नहीं होता है.
एंटीबॉडी कैसे काम करता है
एंटीबॉडी भी एक तरह ड्रग है जो शरीर में इंजेक्ट किया जाता है लेकिन ये हमारे शरीर के इम्यून सिस्टम को उस रोग से लड़ने का मौका नहीं देता बल्कि सीधे उस वायरस पर अटैक करता है. देखने सुनने में ये ज्यादा कारगर समझ आ रहा है लेकिन विशेषज्ञ बताते हैं कि इसके साइड इफेक्ट कुछ भी हो सकते हैं.
इसके अलावा हमारा शरीर प्रोटीन के माध्यम से जो इम्यून सिस्टम विकसित करता है वो एंटीबॉडी के माध्यम से लैब में ही कर दिया जाता है. यानी इस पूरे रिसर्च और ड्रग दोनों को बनाने का खर्चा भी ज्यादा होता है.इजरायल अपने हथियार और दुश्मनों को मुंहतोड़ जवाब देने के लिए जाना जाता है.
यह देश चुपचाप होकर खोज करता है. नये हथियार बनाता है. कई देशों में छपे लेखों में इसका भी जिक्र है कि इजरायल छुपकर जैविक और रसायनिक हथियारों पर भी काम करता है इतना ही नहीं वह रसायनिक हथियारों से होने वाले नुकसान को कम करने के लिए दवा बनाता है.
इजरायल में डिफेंस इंस्टीट्यूट ही इन सभी कामों पर नजर रखता है. इसकी स्थापना साल 1952 में तत्कालीन पीएम के वैज्ञानिक सलाहकार अर्नेस्ट डेविड बेर्गमान ने की थी. कोरोना वायरस से निपटने के लिए दवा बनाने का काम भी इसी के हिस्से है. इजरायल के रक्षा मंत्री के मुताबिक यह वैक्सीन मोनोक्लोनल तरीके से कोरोना वायरस पर हमला करती है और बीमार लोगों के शरीर के अंदर ही कोरोना वायरस का खात्मा कर देती है.
कहा है यह लैब, कैसी है सुरक्षा
इजरायल का डिफेंस बायोलॉजिकल इंस्टीट्यूट दक्षिणी तेलअबीब से 20 किलोमीटर की दूरी पर स्थित नेस जिओना में है. यहां 350 से ज्यादा कर्मचारी काम करते हैं. इसमें 150 से ज्यादा वैज्ञानिक हैं. यह इंस्टीट्यूट सीधा पीएम बेंजामिन नेतन्याहू को रिपोर्ट करता है. इस तरह के संकट में यह सरकारी एजेंसियों के साथ मिलकर काम करता है.
यह खुफिया एजेंसी मोसाद के साथ भी मिलकर काम करता है. यह लैब जमीन के अंदर बना हुआ है. ब्रिटिश खुफिया अधिकारी गॉर्डन थॉमस के मुताबिक इजरायल की यह सीक्रेट लैब अत्यधिक सुरक्षा घेरे में रहती है. इस इंस्टीट्यूट के चारों ओर क्रंक्रीट की दीवार बनाई गई है. इस इंस्टीट्यूट के ऊपर से किसी भी विमान को उड़ने की इजाजत नहीं है. दीवार के ऊपर सेंसर लगे हुए हैं. काम करने वाले कर्चारी को हर दिन नया कोड दिया जाता है. बिना कोड वर्ड और रेटिना जांच के कोई अंदर प्रवेश नहीं कर सकता.
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