Dalai Lama : दुनिया में निर्वासित तिब्बतियों का सबसे बड़ा समुदाय भारत में रहता है. तिब्बती प्रशासन के एक सर्वेक्षण के अनुसार निर्वासन में रह रहे अनुमानित 127,935 तिब्बतियों में से लगभग 95,000 तिब्बती शरणार्थी भारत में रहते हैं. ‘भारत सरकार दलाई लामा को राजनीतिक शरण देती है’ तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के राज्यसभा (भारतीय संसद के उच्च सदन) में यह घोषणा करने के बाद भारत में तिब्बतियों के निर्वासन की यात्रा शुरू हुई और तकरीबन छह दशक से अधिक समय से बड़ी संख्या में तिब्बती शरणार्थी भारत के विभिन्न शिविरों और बस्तियों में रह रहे हैं.
भारत में तिब्बती बस्तियां
धर्मशाला, हिमाचल प्रदेश में लगभग 10,400 तिब्बती शरणार्थी रहते हैं. यहीं केंद्रीय तिब्बती प्रशासन (सीटीए) का मुख्यालय भी है. इसके अलावा कर्नाटक के बयलाकुप्पे और मुंडगोड बड़े कृषि आधारित तिब्बती आवास हैं. हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला के बाद बायलाकूप्पे दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी तिब्बती बस्ती है. लगभग 15,000 निर्वासित तिब्बती बायलाकूप्पे में रहते हैं. कर्नाटक में कुल पांच तिब्बती बस्तियां हैं. बायलाकूप्पे में स्थित लुगसंग समदुपलिंग 1961 में और डिकी लारसो 1969 में स्थापित की गयी थी. मुंडगोड़ में स्थित डोगुलिंग बस्ती 1966 में स्थापित की गयी थी. हुनसूर राबगयलिंग 1972 में और कोलेगाल धोन्डेनलिंग 1973 में स्थापित की गयी थी. उत्तराखंड में लगभग 10,000 तिब्बती रहते हैं और उनमें से अधिकतर देहरादून, मसूरी और नैनीताल में रहते हैं. इसके अलावा दिल्ली, बेंगलुरु और मैसूर में बड़ी संख्या में तिब्बती शरणार्थी रहते हैं.
कानूनी स्थिति और अधिकार
तिब्बती भारत में शरणार्थी के रूप में रहते हैं. उन्हें भारत की नागरिकता नहीं मिली है (हालांकि कुछ मामलों में व्यक्तिगत आधार पर नागरिकता के लिए आवेदन किया गया है). उनके पास एक आरसी (रजिस्ट्रेशन सर्टिफिकेट) होता है, जो उन्हें भारत में कानूनी रूप से रहने की अनुमति देता है. आरसी का हर साल नवीनीकरण करवाना होता है. तिब्बती भारतीय नागरिकों की तरह वोट नहीं डाल सकते और सरकारी नौकरियों के लिए पात्र नहीं होते. भारत सरकार उन्हें शिक्षा, स्वास्थ्य और रहने के लिए भूमि जैसे क्षेत्रों में सहयोग प्रदान करती है.
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