Donald Trump Meets Pak Army Chief: आमतौर पर अंतरराष्ट्रीय संबंधों में किसी भी देश के राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री की मुलाकातें उनके समकक्ष नेताओं से ही होती हैं. सैन्य अधिकारियों से ऐसे उच्चस्तरीय मुलाकातें बहुत दुर्लभ होती हैं, खासकर तब जब दोनों देशों के रिश्ते भी सामान्य न हों. ऐसे में जब अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल आसिम मुनीर से मुलाकात की, तो यह कदम वैश्विक राजनीति के जानकारों और रणनीतिक विश्लेषकों के बीच चर्चा का विषय बन गया है.
पाकिस्तान की ओर से इस मुलाकात को एक बड़ी कूटनीतिक सफलता के रूप में पेश किया जा रहा है. देश के मीडिया में इसे बढ़त के तौर पर दिखाया जा रहा है, जिससे यह संदेश देने की कोशिश है कि पाकिस्तान की अहमियत अब भी बरकरार है. लेकिन विशेषज्ञ इस मुलाकात के पीछे कुछ और ही समीकरण देख रहे हैं.
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विश्लेषकों का मानना है कि इस अप्रत्याशित मुलाकात की सबसे बड़ी वजह ईरान है. दरअसल, पश्चिम एशिया में ईरान की बढ़ती भूमिका और अमेरिका-ईरान तनाव के बीच डोनाल्ड ट्रंप एक बार फिर पाकिस्तान को अपने रणनीतिक उद्देश्यों के लिए तैयार करना चाहते हैं. अमेरिका चाहता है कि यदि ईरान के खिलाफ सैन्य कार्रवाई की नौबत आती है, तो पाकिस्तान की जमीन को एक लॉन्चपैड की तरह इस्तेमाल किया जा सके. चूंकि भारत, खाड़ी देश या कोई भी पश्चिमी एशियाई देश अमेरिका को अपनी जमीन से हमले की अनुमति नहीं देंगे, ऐसे में पाकिस्तान ही अमेरिका के लिए सबसे व्यवहारिक विकल्प के तौर पर देखा जा रहा है.
पाकिस्तान की आर्थिक स्थिति अत्यंत कमजोर है और वह आईएमएफ जैसी संस्थाओं से राहत पैकेज के लिए अमेरिका पर निर्भर है. यदि वह अमेरिका का साथ नहीं देता, तो उसे आर्थिक मदद बंद होने का खतरा हो सकता है. इसलिए जानकारों का मानना है कि पाकिस्तान, अमेरिकी दबाव के आगे झुक सकता है. इसके अलावा यह भी देखा जा रहा है कि अमेरिका और इजरायल दोनों मिलकर ईरान को इस्लामी दुनिया में अलग-थलग करने की रणनीति पर काम कर रहे हैं. अगर पाकिस्तान जैसा बड़ा मुस्लिम देश ईरान से दूरी बना लेता है, तो इससे ईरान की कूटनीतिक स्थिति और भी कमजोर हो सकती है.
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पाकिस्तानी सेना प्रमुख आसिम मुनीर की अमेरिका में इस्लाइल समर्थक लॉबी से मुलाकात की खबरें भी चर्चा में हैं. पीटीआई समर्थकों का दावा है कि मुनीर की ऐसी गतिविधियां पाकिस्तान की परंपरागत विदेश नीति के विपरीत हैं. वे आरोप लगाते हैं कि मुनीर नहीं चाहते कि कोई और इस्लामी देश परमाणु हथियार हासिल करे और यही वजह है कि वे ईरान के परमाणु कार्यक्रम के खिलाफ अमेरिका का साथ दे रहे हैं.
दिलचस्प बात यह है कि पाकिस्तान की नागरिक सरकार ने कई बार ईरान का समर्थन किया है, लेकिन मुनीर जैसे कट्टरपंथी छवि के सैन्य अधिकारी ने इस मुद्दे पर सार्वजनिक रूप से कभी कोई टिप्पणी नहीं की है. इससे यह संकेत भी मिलता है कि पाकिस्तान की असल विदेश नीति अब सैन्य प्रतिष्ठान के इशारे पर तय हो रही है, न कि निर्वाचित सरकार के. इस पूरी स्थिति में यह सवाल अब अहम हो गया है कि क्या पाकिस्तान वास्तव में अमेरिकी रणनीति का हिस्सा बनने जा रहा है? और अगर हां, तो क्या इससे उसकी संप्रभुता और इस्लामी पहचान को नुकसान नहीं होगा?
अंततः ट्रंप और आसिम मुनीर की यह मुलाकात सिर्फ एक औपचारिकता नहीं, बल्कि एक बड़े भू-राजनीतिक खेल का हिस्सा है, जिसमें अमेरिका अपने पुराने मोहरे फिर से सजाता दिख रहा है और पाकिस्तान फिर उसी चौराहे पर खड़ा है जहां से उसकी दशा-दिशा तय होती है.
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