Death Sentence in UAE: यमन में एक हत्या के जुर्म में भारतीय नर्स निमिषा प्रिया को 16 जुलाई को फाँसी दी जानी है. भारत सरकार उसे बचाने की पूरी कोशिश कर रही है, लेकिन यमन के जटिल राजनीतिक हालात इसमें बाधा बन रहे हैं. क्या ‘ब्लड मनी’ से सजा टाली जा सकती है? इस बीच, आइए जानते हैं उस दौर के बारे में जब एक पाकिस्तानी नागरिक की हत्या के जुर्म में 17 भारतीयों को मौत की सजा सुनाई गई थी.
केरल की रहने वाली 37 वर्षीय नर्स निमिषा प्रिया इस वक्त यमन की राजधानी सना की जेल में हैं. 2017 में उन्हें एक यमनी नागरिक और उनके बिजनेस पार्टनर तलाल अब्दो मेहदी की हत्या के मामले में गिरफ्तार किया गया था. आरोप है कि निमिषा ने तलाल को बेहोश करने के लिए सेडेटिव दवा दी थी, ताकि वह उसका पासपोर्ट वापस ले सकें जो तलाल ने जब्त कर लिया था. लेकिन ओवरडोज के चलते उसकी मौत हो गई. इसके बाद, निमिषा और उनकी यमनी सहकर्मी हनन ने शव के टुकड़े कर एक पानी की टंकी में फेंक दिए. 2018 में निमिषा को मौत की सजा सुनाई गई और 2023 में यमन की सुप्रीम ज्यूडिशियल काउंसिल ने उनकी अपील खारिज कर दी. दिसंबर 2024 में यमन के राष्ट्रपति ने सजा को मंजूरी दे दी और अब 16 जुलाई 2025 को उन्हें फांसी दी जानी है.
भारत सरकार के प्रयास और सामने आई बड़ी चुनौतियां
भारत सरकार इस मामले में शुरू से सक्रिय रही है. विदेश मंत्रालय यमन के स्थानीय अधिकारियों और निमिषा के परिवार से लगातार संपर्क में है. लेकिन इस मामले की सबसे बड़ी चुनौती यह है कि यमन में लंबे समय से गृहयुद्ध चल रहा है और राजधानी सना पर हूती विद्रोहियों का कब्जा है. भारत का हूती गुट से कोई औपचारिक राजनयिक संबंध नहीं है. ऐसे में ना तो कूटनीतिक प्रतिनिधि वहां आसानी से पहुंच सकते हैं और ना ही कोई आधिकारिक हस्तक्षेप किया जा सकता है.
क्या Blood Money से बच सकती है निमिषा की जान?
इस्लामी देशों में शरिया कानून के तहत हत्या जैसे मामलों में एक विकल्प होता है, ‘दियात’ यानी ब्लड मनी. इसमें दोषी पक्ष मृतक के परिवार को मुआवजा देकर क्षमा प्राप्त कर सकता है और सजा से राहत पा सकता है. इसी उम्मीद के तहत निमिषा के परिवार और समर्थकों ने 1 मिलियन डॉलर यानी करीब 8 करोड़ रुपये की पेशकश की है. इसमें मुफ्त चिकित्सा सेवा, सहायता और अन्य सुविधाएं देने का भी प्रस्ताव शामिल है. सामाजिक कार्यकर्ता सैमुअल जेरोम बास्करन इस समझौते की मध्यस्थता कर रहे हैं. हालांकि, अभी तक पीड़ित का परिवार इस प्रस्ताव पर राजी नहीं हुआ है.
Death Sentence in UAE: जब भारत ने 17 लोगों को फांसी से बचाया था
यह मामला हमें साल 2009 की याद दिलाता है, जब यूएई में 17 भारतीयों को एक पाकिस्तानी नागरिक की हत्या के मामले में मौत की सजा सुनाई गई थी. ये हमला यूएई के शारजाह में अवैध शराब के कारोबार को लेकर हुए झगड़े में एक पाकिस्तानी नागरिक की चाकू मारकर हत्या कर दी गई थी. इस मामले में डीएनए जांच और गवाही के आधार पर जज यूसुफ अल हमादी ने 17 भारतीय युवकों को मौत की सजा सुनाई गई थी. ये सभी प्रवासी मजदूर थे जो पंजाब और हरियाणा से गए थे और इनकी उम्र 17 से 30 वर्ष थी.
भारत सरकार ने इस मामले को गंभीरता से लिया था. भारतीय दूतावास ने वहां की एक प्रतिष्ठित कानूनी फर्म नियुक्त की, अपील दायर की गई और मृतक के परिवार से बातचीत कर ब्लड मनी के जरिए सजा माफ कराने की कोशिश की गई थी. (17 Indians were saved from Death)
इस केस में 4 करोड़ रुपये (करीब 20 लाख दिरहम) की राशि बतौर ब्लड मनी दी गई थी. इस फंड को दुबई के भारतीय होटल व्यवसायी एसपी सिंह ओबेरॉय, तत्कालीन पंजाब कांग्रेस अध्यक्ष कैप्टन अमरिंदर सिंह और शिअद के नेता सुखदेव सिंह ढींडसा जैसे लोगों ने मिलकर जुटाया. इसके बाद पीड़ित परिवार ने माफ कर दिया और 17 भारतीयों को 3 साल बाद जेल से रिहा कर भारत लाया गया.
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क्या निमिषा का मामला भी उसी तरह सुलझ सकता है?
हालांकि यूएई केस की तरह इस मामले में भी ब्लड मनी एक रास्ता हो सकता है, लेकिन निमिषा का मामला काफी जटिल है. यमन की राजनीतिक स्थिति अस्थिर है, हूती विद्रोहियों का प्रभाव है, और भारत की वहां कूटनीतिक पहुंच बेहद सीमित है. साथ ही, मृतक के परिवार से संपर्क और उन्हें समझाना भी मुश्किल बना हुआ है. ब्लड मनी की रकम भी काफी बड़ी है. इन सभी वजहों से यह मामला और पेचीदा हो गया है.
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भारत की कोशिशें अभी भी जारी हैं
निमिषा के समर्थन में ‘सेव निमिषा प्रिया इंटरनेशनल एक्शन काउंसिल’ नामक संगठन बना है, जो लगातार इस दिशा में काम कर रहा है. भारत सरकार ने भी कूटनीतिक विकल्पों की तलाश बंद नहीं की है. हालांकि समय बहुत कम बचा है और 16 जुलाई की तारीख बेहद नजदीक है. अगर यमन के अधिकारियों, पीड़ित के परिवार और मध्यस्थों के बीच कोई समझौता जल्दी नहीं हुआ, तो निमिषा को फांसी से बचाना बहुत मुश्किल हो जाएगा.
हालात चाहे जैसे भी हों, भारत ने अतीत में अपने नागरिकों को विदेशों में फांसी से बचाने में सफलता पाई है. यूएई का 2009 मामला इसका उदाहरण है. अब सवाल है, क्या वही इतिहास फिर से दोहराया जा सकता है? भारत सरकार, सामाजिक संगठन और निमिषा का परिवार एकजुट होकर कोशिश कर रहे हैं. अब सबकी निगाहें 16 जुलाई पर हैं, और इस उम्मीद पर टिकी हैं कि शायद कोई चमत्कार हो जाए.
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