Indus Water Treaty: भारत से माफी मांगेंगे पाकिस्तानी सेना प्रमुख, किसने उड़ाई आतंकिस्तान की नींद? 

Indus Water Treaty: पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत ने सिंधु जल समझौता निलंबित कर दिया है, जिससे पाकिस्तान में हड़कंप मच गया है. पाकिस्तानी एक्सपर्ट मोइन पीरजादा ने माना कि पाकिस्तान भारत के सामने कमजोर है और अंततः माफी मांगनी पड़ेगी.

By Aman Kumar Pandey | April 26, 2025 10:37 AM
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Indus Water Treaty: पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव चरम पर पहुंच गया है. इस हमले का करारा जवाब देते हुए भारत सरकार ने 1960 में हुए सिंधु जल संधि को निलंबित कर दिया है. यह संधि दोनों देशों के बीच पानी के बंटवारे को लेकर बनी थी, जिसके तहत भारत पश्चिम की तीन नदियों सिंधु, झेलम और चिनाब का एक बड़ा हिस्सा पाकिस्तान को देता रहा है. भारत के इस अहम फैसले से पाकिस्तान में बेचैनी और घबराहट का माहौल है, क्योंकि यह फैसला उसकी जल सुरक्षा के लिए एक बड़ा झटका साबित हो सकता है.

भारत की इस कूटनीतिक कार्रवाई के बाद पाकिस्तान बार-बार विरोध दर्ज करवा रहा है और धमकियों भरे बयान दे रहा है. इसी बीच पाकिस्तान के जाने-माने विश्लेषक मोइन पीरजादा ने अपने देश के रवैये पर सवाल उठाते हुए एक तीखा बयान दिया है. उन्होंने कहा कि पाकिस्तान का मीडिया और कुछ लोग एक काल्पनिक दुनिया में जी रहे हैं. वे सोचते हैं कि अगर भारत पानी रोकता है तो पाकिस्तान की वायुसेना जाकर भारत के बांधों को तबाह कर देगी और पानी को ‘आजाद’ करवा लेगी, जबकि ऐसा कुछ भी नहीं होने वाला है.

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पीरजादा ने यह भी कहा कि पाकिस्तान की मौजूदा स्थिति अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत से टकराने लायक नहीं है. उसके पास न तो मजबूत कानूनी दलीलें हैं और न ही अंतरराष्ट्रीय लॉ फर्मों को नियुक्त करने की आर्थिक ताकत. उन्होंने भविष्यवाणी की कि इस विवाद का अंत इसी में होगा कि पाकिस्तान सेना प्रमुख और उसकी प्रॉक्सी ताकतें भारत से माफी मांगेंगी और प्रधानमंत्री मोदी से निवेदन करेंगी कि सिंधु जल संधि को बहाल कर दिया जाए.

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उन्होंने यह भी बताया कि इस पूरी प्रक्रिया में कई महीने लग सकते हैं,और इस दौरान पाकिस्तान की जनता को भ्रमित करने के लिए नए-नए झूठे नैरेटिव गढ़े जाएंगे. मगर अंत में पाकिस्तान को ही झुकना पड़ेगा, क्योंकि भारत के सामने वह बेहद कमजोर और असहाय स्थिति में है. यह पूरी स्थिति इस बात को दर्शाती है कि कैसे एक जल-संधि, जो दशकों से कायम थी, अब क्षेत्रीय राजनीति और सुरक्षा का एक बड़ा हथियार बन चुकी है.

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