पाकिस्तान में फिर तख्तापलट की आहट! जानिए कब-कब सेना ने सत्ता पर कब्जा किया

Pakistan Army Chief Asim Munir: ऑपरेशन सिंदूर के बाद पाकिस्तान में सियासी हलचल तेज़ हो गई है. आर्मी चीफ जनरल आसिम मुनीर और राष्ट्रपति जरदारी के बीच टकराव की खबरें सामने आ रही हैं. बिलावल भुट्टो के हालिया बयान और अमेरिकी समर्थन की अटकलों के बीच, पाकिस्तान एक और सैन्य तख्तापलट की ओर बढ़ता दिख रहा है.

By Ayush Raj Dwivedi | July 8, 2025 10:20 AM
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Pakistan Army Chief Asim Munir: ऑपरेशन सिंदूर के बाद पाकिस्तान की राजनीति में गहरा तनाव देखा जा रहा है. पाकिस्तानी सेना प्रमुख जनरल आसिम मुनीर और राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी के बीच पर्दे के पीछे रस्साकशी की खबरें जोरों पर हैं. ताजा मीडिया रिपोर्ट्स और विश्लेषकों के अनुसार, पाकिस्तान में एक बार फिर तख्तापलट (Coup) की भूमिका तैयार हो रही है.

बिलावल भुट्टो के बयान से बढ़ा संदेह

हाल ही में बिलावल भुट्टो द्वारा दिए गए एक बयान में उन्होंने हाफिज सईद और मसूद अजहर जैसे आतंकियों को भारत को सौंपने की बात कही. जानकारों के अनुसार यह बयान न केवल राजनीतिक रणनीति का हिस्सा था, बल्कि यह इस बात का संकेत भी हो सकता है कि पाकिस्तान की सत्ता के गलियारों में कुछ बड़ा चल रहा है.

अमेरिका का समर्थन और मुनीर की मंशा?

सूत्रों का दावा है कि जनरल आसिम मुनीर को अमेरिका का समर्थन मिल चुका है और वे पूर्व सेनाध्यक्षों की राह पर चलते हुए राष्ट्रपति पद पर खुद काबिज हो सकते हैं. संभावना जताई जा रही है कि अगर जरदारी रास्ते से नहीं हटे तो मुनीर उन्हें हटा सकते हैं, और जरूरत पड़ी तो प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ को भी पद से बेदखल कर सकते हैं.

पाकिस्तान में तख्तापलट का इतिहास

पाकिस्तान का इतिहास सैन्य तख्तापलट से भरा पड़ा है, जहां सेना ने कई बार लोकतांत्रिक सरकारों को गिराकर सत्ता हथियाई है:

1953-54: गवर्नर जनरल गुलाम मोहम्मद ने प्रधानमंत्री ख्वाजा नजीमुद्दीन की सरकार बर्खास्त की.

1958: राष्ट्रपति इस्कंदर मिर्जा ने संसद और सरकार को खत्म किया.

1977: जनरल ज़ियाउल हक ने प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो की सरकार गिराई.

1999: जनरल परवेज़ मुशर्रफ ने प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ की सरकार को हटाया और खुद सत्ता संभाली.

क्या फिर से दोहराया जाएगा इतिहास?

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि अगर सत्ता संघर्ष और अस्थिरता यूं ही जारी रही तो पाकिस्तान एक और सैन्य तख्तापलट का गवाह बन सकता है. यह न सिर्फ देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए खतरा होगा, बल्कि क्षेत्रीय स्थिरता पर भी गहरा प्रभाव डाल सकता है.

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