Pakistan Selling PIA Airline: पाकिस्तान की राष्ट्रीय एयरलाइन PIA (Pakistan International Airlines) लगातार घाटे में चल रही है. रिपोर्ट के अनुसार सरकार इसे 2025 के अंत तक किसी भी हालत में बेचना चाहती है. इससे पहले भी इसे बेचने की कोशिश हुई थी, लेकिन तब कोई ठोस नतीजा नहीं निकल सका. अब फिर से PIA को बेचने की प्रक्रिया शुरू हो गई है.
Pakistan Selling PIA Airline: इस बार कौन-कौन बोली में शामिल?
‘द एक्सप्रेस ट्रिब्यून’ की रिपोर्ट के मुताबिक, पाकिस्तान के प्राइवेटाइजेशन कमीशन बोर्ड ने चार कंपनियों को बोली के लिए चुना है. इनमें से तीन कंपनियां सीमेंट कारोबार से जुड़ी हैं. यानी अब एयरलाइन को खरीदने में वे कंपनियां दिलचस्पी दिखा रही हैं, जिनका एयरलाइन संचालन से कोई सीधा नाता नहीं है.
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पिछली बार क्यों नहीं बिकी एयरलाइन?
पिछली बार सरकार ने PIA की कीमत 85.03 अरब पाकिस्तानी रुपये रखी थी, जिसमें करीब 45 अरब रुपये का घाटा शामिल था. लेकिन बाजार में सिर्फ 10 अरब रुपये की सबसे ऊंची बोली आई. यानी खरीदारों ने PIA की कीमत बहुत कम लगाई, जिसके चलते सौदा नहीं हो सका.
पाकिस्तान कि इतनी बड़ी एयरलाइन को खरीदने के लिए आगे आ रही सीमेंट कंपनी जिससे यह स्थिति बताती है कि PIA की हालत कितनी खराब हो चुकी है. पारंपरिक एविएशन या टूरिज्म कंपनियां इससे दूरी बना रही हैं. अब ऐसे उद्योगों से जुड़ी कंपनियां बोली लगा रही हैं जिनका मुख्य काम कुछ और है. माना जा रहा है कि ये कंपनियां या तो अपने बिजनेस को फैलाना चाहती हैं या फिर कम कीमत में एक बड़ा ब्रांड खरीदकर फायदा उठाना चाहती हैं.
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पाकिस्तान सरकार की मजबूरी
PIA को लेकर सरकार की सोच अब यह हो गई है कि इसे किसी भी तरह से बेचा जाए, चाहे खरीदार किसी भी सेक्टर से हो. सरकार के पास घाटा झेलने की अब गुंजाइश नहीं बची है, इसलिए उसे राहत की तलाश है. लेकिन यह भी सवाल उठता है कि बिना एविएशन अनुभव वाली कंपनियां इस एयरलाइन को कैसे संभालेंगी? रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि 2023 में हालात इतने खराब हो गए थे कि 7,000 कर्मचारियों को नवंबर का सैलरी नहीं मिला था.
PIA की यह स्थिति सिर्फ आर्थिक विफलता नहीं है, बल्कि इसे पाकिस्तान की राष्ट्रीय प्रतिष्ठा से भी जोड़कर देखा जा रहा है. कभी यह एयरलाइन देश की पहचान हुआ करती थी, लेकिन आज इसके लिए खरीदार भी नहीं मिल रहे. जो कंपनियां आगे आ रही हैं, वे भी इसे दूसरे फायदे के रूप में देख रही हैं, न कि राष्ट्रीय सेवा के रूप में.
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