लेकिन हालात अचानक बदलते नजर आए जब अमेरिकी सेना ने ईरान के परमाणु ठिकानों पर हमला किया. इस हमले के बाद पाकिस्तान की ओर से कोई कड़ी प्रतिक्रिया नहीं आई. न तो बयान दिया गया, न ही विरोध जाहिर किया गया. इस चुप्पी को लेकर पाकिस्तान पर गंभीर आरोप लग रहे हैं कि उसने अमेरिका से कोई राजनीतिक या आर्थिक लाभ लेकर ईरान के मुद्दे पर चुप्पी साध ली है.
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इस संदर्भ में एक और अहम बात सामने आई है कि पाकिस्तान के आर्मी चीफ जनरल आसिम मुनीर की अमेरिका में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के साथ मुलाकात. बताया जा रहा है कि व्हाइट हाउस में हुए इस निजी लंच के दौरान ईरान से जुड़ी कई संवेदनशील बातें हुईं. इस बैठक में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री की गैरमौजूदगी पर भी आलोचना हुई और इस मुलाकात को लेकर कई तरह के राजनीतिक कयास लगाए जा रहे हैं.
इतना ही नहीं, इससे पहले भी पाकिस्तान ने ईरान के प्रति सहयोग में कमी दिखाई थी जब उसने बलूचिस्तान में ईरान से लगी अपनी सीमा बंद कर दी थी. पाकिस्तान ने यह कदम ईरान और इजरायल के बीच बढ़ते तनाव के मद्देनज़र उठाया था ताकि संभावित शरणार्थी संकट से बचा जा सके. इन तमाम घटनाओं को जोड़कर देखा जाए तो साफ है कि पाकिस्तान का रुख अब पहले जैसा नहीं रहा. पहले ईरान के समर्थन की बातें करने वाला पाकिस्तान अब पूरी तरह खामोश है, जिससे अंतरराष्ट्रीय समुदाय में उसकी नीयत और नीतियों पर सवाल उठने लगे हैं.
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