ICG ने चेतावनी दी है कि यह नया उभरता संघर्ष कई स्तरों पर नकारात्मक असर डाल सकता है. सबसे बड़ा खतरा यह है कि म्यांमार की बौद्ध बहुल आबादी के भीतर रोहिंग्या मुस्लिम अल्पसंख्यकों के प्रति पहले से मौजूद असंतोष और बढ़ सकता है. इससे रोहिंग्याओं की म्यांमार वापसी की संभावनाएं और भी क्षीण हो जाएंगी. बांग्लादेश, जहां पहले से 13 लाख से अधिक रोहिंग्या शरण लिए हुए हैं, इस स्थिति को लेकर चिंतित है क्योंकि वह इन शरणार्थियों को म्यांमार वापस भेजने की कोशिश कर रहा है.
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गौरतलब है कि 2017 में म्यांमार की सेना द्वारा की गई क्रूर सैन्य कार्रवाई के बाद बड़ी संख्या में रोहिंग्या बांग्लादेश में पनाह लेने को मजबूर हुए थे. इस कार्रवाई को संयुक्त राष्ट्र ने “जातीय सफाए का उदाहरण” बताया था. अब जबकि कुछ रोहिंग्या हथियार उठाकर म्यांमार की अराकान आर्मी को चुनौती दे रहे हैं, इससे रखाइन राज्य में हिंसा और रक्तपात की आशंका बढ़ गई है.
रिपोर्ट में कहा गया है कि सीमा के दोनों ओर मौजूद अस्थिरता और अराजक ताकतों का नियंत्रण स्थिति को और जटिल बना रहा है. जबकि बांग्लादेश सरकार अराकान आर्मी के साथ संवाद की कोशिश कर रही है, वहीं इस तरह के सशस्त्र टकराव उसकी कूटनीतिक कोशिशों को कमजोर कर सकते हैं.
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ICG की रिपोर्ट में यह भी उल्लेख है कि बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने संयुक्त राष्ट्र से अपील की है कि वह सितंबर के अंत में एक ‘उच्च स्तरीय सम्मेलन’ का आयोजन करे, जिसमें रोहिंग्या संकट पर गंभीर और स्थायी समाधान की कोशिश की जाए. इसके साथ ही, बांग्लादेश ने म्यांमार के रखाइन राज्य में मानवीय गलियारा स्थापित करने का भी प्रस्ताव रखा है ताकि वहां राहत पहुंचाई जा सके.
हालांकि, बांग्लादेश के कई सुरक्षा विशेषज्ञ इस रिपोर्ट को एकतरफा मानते हैं. उनका मानना है कि इसमें पश्चिमी देशों की भू-राजनीतिक सोच और प्राथमिकताएं ज्यादा दिखाई देती हैं, जबकि जमीनी हकीकत को नज़रअंदाज़ किया गया है. फिर भी, यह साफ है कि रोहिंग्या समुदाय में बढ़ती सैन्य गतिविधियां पूरे क्षेत्र के लिए एक बड़ा संकट पैदा कर सकती हैं.
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