मंत्रालय के प्रवक्ता हुमायूं अफगान ने जानकारी दी कि एक अंतर-मंत्रालयी समिति ने इस मामले की जांच की थी. जांच में सामने आया कि कंपनी ने निवेश नहीं किया, ड्रिलिंग और खोज जैसे जरूरी कार्यों में लापरवाही बरती, आवश्यक गारंटी देने में नाकाम रही और अफगान नागरिकों को रोजगार देने के वादे पर भी खरी नहीं उतरी. इन सभी वजहों के चलते अनुबंध को रद्द करने की सिफारिश की गई, जिसे प्रधानमंत्री कार्यालय ने स्वीकार कर लिया.
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अफगानिस्तान के आर्थिक विशेषज्ञों का कहना है कि देश के लिए खनन और ऊर्जा क्षेत्र की परियोजनाएं अत्यंत महत्वपूर्ण हैं, ऐसे में विदेशी कंपनियों को परियोजनाएं सौंपने से पहले कठोर जांच और पारदर्शिता आवश्यक है. तोलो न्यूज से बात करते हुए आर्थिक विशेषज्ञ मोहम्मद नबी अफगान ने कहा कि देश को तेल की सख्त जरूरत है और उसके लिए काम होना चाहिए, केवल समझौते करके काम न करना न अफगानिस्तान के हित में है और न ही कंपनी के. उन्होंने सरकार को सलाह दी कि भविष्य में ऐसे अनुबंधों में ऐसी शर्तें शामिल की जाएं, जो ठोस जिम्मेदारियां तय करें और देरी से बचा जाए. अब अफगानिस्तान में मांग उठ रही है कि स्थानीय भागीदारी वाली कंपनियों को प्राथमिकता दी जाए ताकि ऐसी विफलताओं से देश को भविष्य में नुकसान न उठाना पड़े.
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