किस धर्म के लोग सबसे ज्यादा छोड़ रहे अपना मजहब? हिंदू या मुसलमान

Which Religion People Are Most Atheist: दुनिया में किस धर्म के लोग सबसे ज्यादा अपने मजहब को छोड़ रहे हैं? आइए जानते हैं.

By Aman Kumar Pandey | May 24, 2025 11:52 AM
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Which Religion People Are Most Atheist: दुनिया के कई हिस्सों में मजहब के नाम पर होने वाले संघर्षों और धार्मिक कट्टरता के बीच एक नई सामाजिक प्रवृत्ति उभर कर सामने आई है. यह प्रवृत्ति है धर्म से दूरी बनाने की. यूरोप, अमेरिका, दक्षिण कोरिया जैसे विकसित और प्रगतिशील देशों में ऐसे लोगों की संख्या तेजी से बढ़ रही है, जो अब किसी भी धर्म या आस्था में विश्वास नहीं रखते. यह तबका खुद को ‘नास्तिक’ या ‘धर्मनिरपेक्ष’ मानता है.

प्यू रिसर्च सेंटर के एक हालिया सर्वे के अनुसार, इटली, जर्मनी, स्पेन और स्वीडन जैसे देशों में बड़ी संख्या में लोगों ने अपने पारंपरिक धर्म को त्याग दिया है. सर्वे के मुताबिक, इटली में करीब 28.7 प्रतिशत लोग ऐसे हैं जिन्होंने अपने पारिवारिक या जन्मजात धर्म को छोड़ दिया है और खुद को नास्तिक घोषित कर दिया है.

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इसी तरह जर्मनी में 19.8 फीसदी, स्पेन में 19.6 प्रतिशत और स्वीडन में 16.7 प्रतिशत लोगों ने अपने धार्मिक विश्वासों को नकार दिया है. यह आंकड़े यह दर्शाते हैं कि पश्चिमी देशों में धार्मिक पहचान तेजी से कम होती जा रही है और व्यक्ति अब अपनी सोच और जीवनशैली के अनुसार धार्मिक विश्वास चुनने या अस्वीकार करने लगे हैं.

दक्षिण अमेरिकी देश चिली में 15 फीसदी, मेक्सिको में 13.7 फीसदी और नीदरलैंड में 12.6 फीसदी लोगों ने भी अपने पारंपरिक धर्म को त्याग दिया है. इनमें से लगभग 99 प्रतिशत लोग पहले ईसाई धर्म को मानते थे. इसी तरह ब्रिटेन में करीब 12 फीसदी, जापान में 10.7 फीसदी, ग्रीस में 10.2 फीसदी और कनाडा में 9.5 फीसदी लोग अब खुद को किसी भी धर्म से जुड़ा नहीं मानते.

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इस बदलती प्रवृत्ति में सबसे दिलचस्प बात यह है कि सबसे अधिक लोग ईसाई धर्म छोड़ रहे हैं. प्यू रिसर्च के अनुसार, दुनिया भर में 28.4 प्रतिशत ईसाई अब खुद को नास्तिक घोषित कर चुके हैं, जबकि केवल 1 प्रतिशत लोग ही दूसरे धर्म से ईसाई धर्म में परिवर्तित हुए हैं. जर्मनी में यह आंकड़ा और भी स्पष्ट है 19.7 प्रतिशत ईसाई अब नास्तिक बन चुके हैं.

वहीं इसके उलट, हिंदू और इस्लाम धर्म में जन्मजात धर्म को छोड़ने वाले लोगों की संख्या बेहद कम है. यह तथ्य यह भी दर्शाता है कि इन धर्मों में पारंपरिक जड़ों से जुड़ाव अपेक्षाकृत मजबूत है. कुल मिलाकर, यह वैश्विक बदलाव धर्म और आस्था के प्रति लोगों की बदलती सोच को दर्शाता है. अब धर्म को मजबूरी या परंपरा के रूप में नहीं, बल्कि एक व्यक्तिगत विकल्प के रूप में देखा जाने लगा है. खासकर पश्चिमी देशों में धार्मिक पहचान अब सामाजिक संरचना का स्थायी हिस्सा नहीं रह गई है, बल्कि एक लचीला और बदलता हुआ पहलू बन गई है.

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