International Women’s Day 2025 Special: भारत में ऐसे शुरू हुई थी महिला शिक्षा की मुहिम…देश की पहली महिला शिक्षक सावित्रीबाई फुले बनी थीं ‘बदलाव की किरण’

International Women's Day 2025 Special: अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस 8 मार्च को मनाया जाता है. इस दिन हम समाज में महिलाओं के योगदान और उपयोगिता पर चर्चा करते हैं. इसी क्रम में हम भारत की पहली महिला शिक्षक सावित्रीबाई फुले की विरासत को भी याद कर उनका सम्मान किया जाता है.

By Shubham | March 8, 2025 6:07 AM
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International Women’s Day 2025 Special: अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस 8 मार्च को मनाया जाता है. इस दिन हम समाज में महिलाओं के योगदान और उपयोगिता पर चर्चा करते हैं. इसी क्रम में हम भारत की पहली महिला शिक्षक सावित्रीबाई फुले की विरासत को भी याद कर उनका सम्मान किया जाता है. क्योंकि उन्होंने 19वीं सदी में महिलाओं की शिक्षा के लिए सामाजिक मानदंडों को चुनौती दी और ज्ञान के माध्यम से महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया. ऐसे समय में जब लड़कियों को शिक्षा से वंचित रखा जाता था तब उन्होंने पुणे में लड़कियों के लिए पहला स्कूल खोला और सदियों पुरानी पूर्वाग्रहों को चुनौती दी और भावी पीढ़ियों के लिए नींव रखी. उनका साहस और समानता की निरंतर खोज आज भी लाखों लोगों को प्रेरित करती है, और हमें याद दिलाती है कि सच्ची प्रगति शिक्षा के माध्यम से महिलाओं को सशक्त बनाने से शुरू होती है. इसलिए आज यहां आपके साथ भारत की पहली महिला शिक्षक सावित्रीबाई फुले के बारे में और महिला सशक्तिकरण में उनके योगदान के बारे में बताएंगे…

भारत की पहली महिला शिक्षक का जीवन

सावित्रीबाई फुले का जन्म 3 जनवरी 1831 को महाराष्ट्र के नायगांव में एक ऐसे परिवार में हुआ था जो बहुत ज्यादा सुविधा संपन्न नहीं था. उस समय की सामाजिक बाधाओं के बावजूद उनकी जीवन यात्रा समर्पण की एक शक्तिशाली गवाही के रूप में हम सबके सामने है. सावित्रीबाई का विवाह ज्योतिराव फुले से हुआ था जो एक समाज सुधारक थे, जो लैंगिक समानता में विश्वास करते थे और समाज की बेहतरी के लिए लड़ते थे. 

औपचारिक शिक्षा प्राप्त करने वाली भारत की पहली महिला बनीं

सावित्रीबाई अपने समय की कई महिलाओं की तरह, शुरू में शिक्षा से हतोत्साहित थीं. हालांकि अपने पति के प्रोत्साहन से उन्होंने सामाजिक बाधाओं को तोड़ दिया और अपनी पढ़ाई जारी रखी. 1848 में वह औपचारिक शिक्षा प्राप्त करने वाली भारत की पहली महिला बनीं, एक ऐसा मार्ग जिसने न केवल उनके जीवन को बल्कि अनगिनत अन्य लड़कियों और महिलाओं के जीवन को बदल दिया.

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1848 में पुणे में लड़कियों के लिए पहला स्कूल खोला

सावित्रीबाई की यात्रा चुनौतियों से भरी थी. ऐसे समय में जब महिलाओं से अपेक्षा की जाती थी कि वे अपने घरों तक ही सीमित रहें, दूसरी लड़कियों को शिक्षित करने की उनकी इच्छा को कठोर प्रतिरोध का सामना करना पड़ा. उनकी हिम्मत की परीक्षा तब हुई जब उन्होंने 1848 में पुणे में लड़कियों के लिए पहला स्कूल खोला, उस समय महिला शिक्षा को वर्जित माना जाता था और यही वजह थी अपमान और धमकियों सहित समाज की कड़ी आलोचनाओं का सामना करते हुए सावित्रीबाई अपने संकल्प में अडिग रहीं.

शिक्षा ही महिला सशक्तिकरण की कुंजी है…

सावित्रीबाई को उसी समुदाय से ताने और क्रूर व्यवहार सहना पड़ा जिसका उत्थान वे करना चाहती थीं. फिर भी उन्होंने इन चुनौतियों का सामना इस दृढ़ विश्वास के साथ किया कि शिक्षा ही महिला सशक्तिकरण की कुंजी है. एक शिक्षक के रूप में उन्होंने न केवल लड़कियों को पढ़ाया, बल्कि माता-पिता और समाज की मानसिकता को बदलने का भी काम किया. उन शुरुआती दिनों में, कई माता-पिता अपनी बेटियों को स्कूल भेजने में झिझकते थे और उनका मानना ​​था कि लड़कियों को घर पर ही रहना चाहिए. हालांकि सावित्रीबाई ने महिलाओं को शिक्षित करने, विधवाओं और अन्य महिलाओं सहित उनके सम्मान और अधिकारों के लिए लड़ने का काम जारी रखा.

महिला शिक्षा प्रणाली में उनकी उपलब्धियां

सावित्रीबाई फुले की सबसे उल्लेखनीय उपलब्धि 1848 में पुणे के भिडेवाड़ा में भारत के पहले बालिका विद्यालय की स्थापना थी. उन्होंने उन महिलाओं को पढ़ाने की पहल की जिन्हें शैक्षणिक संस्थानों तक पहुंचने की अनुमति नहीं थी. वह भारत में महिला शिक्षा के क्षेत्र में अग्रणी थीं और उनके काम ने कई अन्य समाज सुधारकों को प्रेरित किया. विद्यालय की स्थापना के अलावा उन्होंने लड़कियों के लिए स्कूलों के एक नेटवर्क के निर्माण में भी योगदान दिया, विशेष रूप से हाशिए के समुदायों की लड़कियों के लिए. उन्होंने लड़कियों के लिए शिक्षा प्राप्त करने के लिए एक सुरक्षित वातावरण बनाया, चाहे उनकी जाति, वर्ग या सामाजिक पृष्ठभूमि कुछ भी हो. उनके प्रयास अभूतपूर्व थे क्योंकि उन्होंने इस विचार को चुनौती दी कि लड़कियां सीखने में सक्षम नहीं हैं.

सावित्रीबाई की विरासत और प्रभाव

आज जब हम 8 मार्च को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस (International Women’s Day in Hindi) मना रहे हैं तो शिक्षा प्रणाली और भारतीय समाज में महिलाओं की भूमिका पर सावित्रीबाई फुले के जबरदस्त प्रभाव को याद करते हैं. उनके काम ने भारत में लड़कियों की शिक्षा की नींव रखी और इससे आने वाली पीढ़ियां प्रेरित हुईं. सावित्रीबाई का महिला अधिकारों के लिए संघर्ष, सामाजिक न्याय के लिए उनकी लड़ाई और शिक्षा के प्रति उनकी अटूट प्रतिबद्धता ने उन्हें महिला सशक्तिकरण का प्रतीक बना दिया. आज अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस (International Women’s Day in Hindi) पर हम एक अधिक न्यायपूर्ण और समान समाज बनाने के लिए उनके बलिदान और योगदान का सम्मान करते हैं.

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