दादी की जिद बनी हौसले की ताकत
अंकित के जीवन में संघर्ष बचपन से ही शुरू हो गया था. वर्ष 2001 में ही उनके पिता का देहांत हो गया. मां सुमित्रा देवी, बड़ी मां सीता देवी और बड़े पापा त्रिवेणी मोदी ने उनका पालन-पोषण किया. दादी फुलवंती देवी हमेशा चाहती थीं कि अंकित पढ़-लिखकर बड़ा अफसर बने. दादी की वही जिद उनके लिए आजीवन प्रेरणा बनी.
2018 में दादी और बड़े पापा के निधन ने उन्हें भीतर से तोड़ दिया, लेकिन उन्होंने खुद को मजबूत किया और पढ़ाई में जुटे रहे.
ट्यूशन पढ़ाकर और जमीन बेचकर पूरी की पढ़ाई
अंकित ने शुरुआती पढ़ाई जयनगर और तिलैया से की, फिर 10वीं भेलवाटांड से 85% अंकों के साथ पास की. 12वीं साइंस कॉलेज हजारीबाग से 87.6% अंकों के साथ पूरी की और राज्य में टॉप-10 में स्थान पाया. स्नातक उन्होंने सेंट कोलंबस कॉलेज, हजारीबाग से फिजिक्स ऑनर्स में 8.3 CGPA से किया और फिर विनोबा भावे विश्वविद्यालय से M.Sc. में 7.8 CGPA हासिल किया. पढ़ाई के साथ वे होम ट्यूशन भी देते थे, जिससे घर का खर्च और अपनी पढ़ाई का खर्च निकलता था.
लॉकडाउन बना वरदान, ऑनलाइन से की तैयारी
कोरोना काल में घर लौटकर उन्होंने YouTube और फ्री ऑनलाइन संसाधनों की मदद से पढ़ाई की. इंटरनेट मीडिया से दूरी, मोबाइल में टाइमर लगाकर सीमित उपयोग और मां को हर दिन की रिपोर्ट देना उनकी दिनचर्या का हिस्सा था. हर दिन वे 8 घंटे की पढ़ाई करते थे और परीक्षा के तीन महीने पहले सोशल मीडिया से पूरी तरह दूर हो गए.
अंकित का युवाओं को संदेश
“खुद पर भरोसा रखो और मेहनत से कभी मत भागो. हर दिन रूटीन बनाकर पढ़ाई करो और मोबाइल का सीमित, सकारात्मक इस्तेमाल करो. मेहनत कभी बेकार नहीं जाती.”
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