Success Story: बिना कोचिंग UPSC में दो बार सफलता, जानिए भारत की पहली दृष्टिहीन महिला IAS की कहानी

Success Story: प्रांजल पाटिल, देश की पहली दृष्टिहीन महिला IAS अधिकारी, ने बिना कोचिंग UPSC परीक्षा पास कर मिसाल कायम की. बचपन में दृष्टि गंवाने के बावजूद उन्होंने हार नहीं मानी और अपनी मेहनत व संकल्प से सफलता की ऊंचाईयों को छू लिया.

By Pushpanjali | May 24, 2025 1:35 PM
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Success Story: कहते हैं, अगर इरादे मजबूत हों तो कोई भी बाधा रास्ता नहीं रोक सकती. इस बात को सच कर दिखाया महाराष्ट्र के उल्हासनगर में जन्मी प्रांजल पाटिल ने, जो आज देश की पहली दृष्टिहीन महिला IAS अधिकारी हैं. उनकी कहानी न सिर्फ प्रेरणादायक है, बल्कि यह भी बताती है कि मुश्किल हालातों में भी हिम्मत और मेहनत के बल पर हर सपना पूरा किया जा सकता है.

प्रारंभिक जीवन और दृष्टिहीनता का सामना

महाराष्ट्र के उल्हासनगर में जन्मी प्रांजल पाटिल ने बहुत कम उम्र में ही जीवन की एक बड़ी चुनौती का सामना किया. जन्म से ही उनकी दृष्टि कमजोर थी और मात्र छह साल की उम्र में उन्होंने पूरी तरह से अपनी आंखों की रोशनी खो दी. लेकिन इस कठिनाई ने उनके हौसले को कभी कम नहीं होने दिया.

शिक्षा की ओर निरंतर कदम

प्रांजल ने अपनी स्कूलिंग मुंबई के कमला मेहता दादर स्कूल फॉर द ब्लाइंड से की. इसके बाद उन्होंने सेंट जेवियर्स कॉलेज, मुंबई से ग्रेजुएशन किया. उनकी पढ़ाई के प्रति लगन इतनी गहरी थी कि उन्होंने जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU), दिल्ली में एडमिशन लिया और इंटरनेशनल रिलेशन में मास्टर्स, एम.फिल और पीएचडी की डिग्रियां हासिल कीं.

कोचिंग नहीं, तकनीक बनी साथी

यूपीएससी जैसी कठिन परीक्षा की तैयारी में जहां अधिकांश छात्र कोचिंग का सहारा लेते हैं, वहीं प्रांजल ने किसी कोचिंग संस्थान में दाखिला नहीं लिया. उन्होंने एक विशेष सॉफ्टवेयर की मदद से किताबें सुनकर पढ़ाई की. इस टेक्नोलॉजी की बदौलत उन्होंने UPSC की पूरी तैयारी की और अपने लक्ष्य की ओर बढ़ीं.

UPSC में दो बार सफलता, रैंक में सुधार

प्रांजल ने पहली बार 2016 में UPSC की परीक्षा दी और 744वीं रैंक हासिल की. लेकिन उन्होंने संतोष नहीं किया और एक साल बाद 2017 में दोबारा परीक्षा दी. इस बार उन्होंने 124वीं रैंक हासिल कर अपने सपने को साकार किया और IAS अधिकारी बन गईं.

देश सेवा की ओर पहला कदम

2018 में प्रांजल की नियुक्ति केरल के एर्नाकुलम में असिस्टेंट कलेक्टर के रूप में हुई. यह न सिर्फ उनके लिए, बल्कि उन सभी लोगों के लिए एक प्रेरणास्पद क्षण था, जो विपरीत परिस्थितियों में भी अपने लक्ष्य को पाने की उम्मीद रखते हैं.

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