सिनेमा: बॉलीवुड में है विचारों की कमी

जब हम सांस्कृतिक शक्ति (सॉफ्ट पावर) की बात करते हैं, तब बॉलीवुड ही जेहन में आता है. दुनिया में सबसे ज्यादा फिल्में भारत में ही बनती हैं, जिसमें हिंदी फिल्मों की एक बड़ी भूमिका है. ऐसे में बॉलीवुड पर छाया संकट चिंता का विषय है.

By Prabhat Khabar Digital Desk | August 28, 2022 11:25 AM
an image

अरविंद दास, लेखक-पत्रकार

हिंदी के कवि और राजनेता श्रीकांत वर्मा ने राजनीतिक सत्ता को लक्ष्य करते हुए अपनी एक कविता में लिखा था कि ‘कोसल में विचारों की कमी है’. जिस तरह से बॉलीवुड की बड़े बजट की फिल्में इन दिनों बॉक्स ऑफिस पर पिट रही है, ऐसा लगता है कि कोसल की तरह बॉलीवुड में भी विचारों की कमी है. बहु प्रतीक्षित ‘लाल सिंह चड्ढा’ भी इसी श्रेणी में शामिल है. हॉलीवुड की चर्चित फिल्म ‘फॉरेस्ट गंप’ (1994) को भारतीय समाज और समय के अनुकूल बना कर ‘लाल सिंह चड्ढा’ में प्रस्तुत किया गया है. एक तरफ यह फिल्म मानवीय भावनाओं, निश्छल प्रेम के फिल्मांकन की वजह से मर्म को छूती है, वहीं दूसरी तरफ पिछले पैंतालिस साल के घटनाक्रमों का महज ‘कोलाज’ बन कर रह गयी है.

फिल्म में आपातकाल, ऑपरेशन ब्लू स्टार, बाबरी मस्जिद विध्वंस, कारगिल युद्ध और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के उभार आदि की झलक मिलती है, हालांकि वह फिल्म की कथा-वस्तु में पैबंद की तरह जुड़ा है. आमिर खान और करीना कपूर भी अभिनय में नया आयाम लेकर प्रस्तुत नहीं होते. उदारीकरण (1991) के बाद भारत आर्थिक रूप से दुनिया में शक्ति का एक केंद्र बन कर उभरा है, लेकिन जब हम सांस्कृतिक शक्ति (सॉफ्ट पावर) की बात करते हैं, तब बॉलीवुड ही जेहन में आता है. दुनिया में सबसे ज्यादा फिल्में भारत में ही बनती हैं, जिसमें हिंदी फिल्मों की एक बड़ी भूमिका है. ऐसे में बॉलीवुड पर छाया संकट चिंता का विषय है.

पिछले तीस साल से आमिर खान, सलमान खान और शाहरुख खान जैसे सितारे बॉलीवुड के आकाश में छाये रहे हैं, लेकिन अब ऐसा लग रहा है कि इनके पास बतौर अभिनेता दर्शकों के लिए कुछ नया देने को रहा नहीं है. पिछले दिनों रिलीज हुई सलमान खान की फिल्में भी फ्लॉप हुई और शाहरुख खान भी जूझ रहे हैं.बॉलीवुड से अलग हिंदी में पिछले कुछ सालों में जिन फिल्मों को दर्शकों ने पसंद किया, वे स्वतंत्र फिल्मकारों की फिल्में ही रहीं, जहां सितारों पर जोर नहीं था. इन फिल्मों की कहानियां उनका सबसे मजबूत पक्ष रहा है. पर बॉलीवुड उद्योग का सारा दारोमदार बॉक्स ऑफिस की सफलता और असफलता पर टिका है, जिसके केंद्र में ‘स्टार’ रहे हैं. बात सिर्फ आमिर, सलमान और शाहरुख खान की ही नहीं है. पिछले दिनों रिलीज हुई रणवीर सिंह की 83, रणवीर कपूर की शमशेरा, अक्षय कुमार की रक्षाबंधन, सम्राट पृथ्वीराज आदि फिल्में भी दर्शकों को सिनेमाघरों तक खींच लाने में असफल रही हैं.

असल में इंटरनेट पर देश-विदेश की बेहतरीन फिल्मों को देखने की सहूलियत दर्शकों को हो गयी है. वे हमेशा विषय-वस्तु में नयेपन की तलाश में रहते हैं. महामारी के दौरान बॉलीवुड पर जो संकट के बादल छाये, उससे उबरने की फिलहाल कोई सूरत नजर नहीं आती. ऐसे में बॉलीवुड को नये विचारों और कहानियों की सख्त जरूरत है, जो दर्शकों के बदलते मिजाज के साथ तालमेल बना कर चल सके.

संबंधित खबर
संबंधित खबर और खबरें
होम E-Paper News Snaps News reels
Exit mobile version