“कहते हैं, प्यार की कोई ज़ुबान नहीं होती… बस महसूस किया जाता है” – जब ‘वीर जारा’ दोबारा रिलीज हुई और सिनेमाघरों में शाहरुख खान का ये डायलॉग दोबारा गूंजा, तो दर्शक काफी इमोशनल हो गए. सोशल मीडिया पर कई ऐसे वीडियोज सामने आए, जिसमें दर्शक मूवी को दोबारा बड़े पर्दे पर देखकर काफी खुश दिखे. हाल के कुछ महीनों में मेकर्स ने कई पुरानी फिल्मों को री-रिलीज किया और ये ट्रेंड अभी भी चल रहा है. री-रिलीज का जादू पुराने दर्शकों के साथ-साथ नए दौर के भी दर्शकों के दिलों को छू रहा है. अब इन री-रिलीज फिल्मों की सफलता के पीछे वजह क्या है, इसपर फिल्म क्रिटक्स विनोद अनुपम से बात करते हैं.
क्या वजह है कि दर्शक पुरानी फिल्मों की ओर आकर्षित हो रहे हैं?
फिल्म क्रिटक्स विनोद अनुपम ने इस पर कहा, सबसे बड़ा कारण ये है कि हिंदी सिनेमा कहानी के संकट से जूझती रही है और नयी कहानियों के लिए वह जोखिम उठाने के लिए तैयार नहीं दिखती है. मल्टीप्लेक्स आने के बाद जो मुशिकलें हुई है सिनेमा के सामने. मल्टीप्लेक्स का स्पेस बड़ा है, मतलब कि एक ही थियेटर में पांच फिल्में साथ में चल रही होती है. पहले होता था कि एक ही कहानी पर चार तरह की फिल्में बन रही है और अब है कि आप एक ही कहानी पर चार तरह की फिल्में नहीं बना सकते, क्योंकि एक ही जगह पर चारों फिल्में चल रही होती है.
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दर्शकों की स्वीकृति भी जरूरी
दर्शकों को कुछ नया देना इनकी मजबूरी है, इसलिए ये पुराने की तरफ लौट रहे हैं. ये नये की चुनौती के लिए तैयार नहीं है. तो उससे बचने के लिए ये पुराने की तरफ लौट रहे हैं. इनके लिए आसान है कि पुराने फिल्में जो सफल रही है, जो पुरानी फिल्में उस दौर में नहीं चली, उसे वापस लेकर आ जाए. होता है कि कुछ फिल्में समय के पहले बन गई है, जैसे तीसरी कसम. जब ये बनकर रिलीज हुई तब दर्शकों ने इसे स्वीकार नहीं किया, बाद में वह फिल्म अभी तक दर्शक की ओर से सराही जा रही है. एक फिल्म थी अंदाज अपना अपना, उस फिल्म की बराबर चर्चा की जाती है. सलमान खान-आमिर खान की. वह फिल्म बहुत बुरी तरह से फ्लॉप हुई थी, लेकिन इंटरनेट पर वह ऑल टाइम हिट है और सबसे ज्यादा देखी जानी फिल्मों में शामिल है.
क्या मेकर्स री-रिलीज फिल्में किसी मजबूरी में कर रहे हैं या कोई और वजह है?
विनोद अनुपम कहते हैं, नये की चुनौती के लिए ये तैयार नहीं है. इनकी बाध्यता है कि ये पुरानी कहानियां जो हिट रही है और सराही गई है, उनको ये वापस लाए. एक वजह ये भी है कि स्टार सिस्टम टूटा है, जो सफलता की गारंटी हिंदी सिनेमा के पास होती थी, जैसे सलमान खान को ले लिया, फिल्म हिट हो गई, शाहरुख खान को ले लिया, तो फिल्म हिट हो गई. ये भ्रम भी हिंदी सिेनमा का टूटा है. अब कहानियां हिट हो रही है. नयी बातें नये तरह के प्रेजेंटेशन हिट हो रहे हैं. उसके लिए ये पीछे की तरफ लौट रही है, कि वहां से जिन फिल्मों में बड़े स्टार ना भी हो. उन्होंने एक उदाहरण देते हुए समझाया कि, जैसे मुंज्या. उसमें सिर्फ एक स्थनीयता थी.
रिलीज की टाइमिंग भी जरूरी है
विनोद अनुपम ने बताया कि फिल्म के रिलीज की टाइमिंग जरूरी है. आपने जिस समय फिल्म को पहली बार रिलीज किया तो उस समय थियेटर में कई बड़ी फिल्में चल रही हो, तो ऐसे में फिल्में दब जाती है. चूंकि अभी आपको थियेटर खाली मिल गया और थियेटर में वैसे चुनौतियां नहीं है, तो फिल्म एक्सेप्ट हो जाती है.दर्शक का मूड भी बदलता है.
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फिल्में रिलीज करने की है पुरानी परंपरा
पुरानी फिल्में रिलीज करने की परंपरा बहुत पुरानी रही है. पहले त्योहारों के समय में खास कर दशहरे के वक्त पुरानी फिल्में ही थियेटर में आती थी. अभी की जो परंपरा है, वह उससे थोड़ा सा अलग है. जिन दर्शकों से सिनेमा छूट गया था, उन दर्शकों के लिए रिलीज हो रही है क्योंकि अब फिल्में पुरानी नहीं हो रही है. अब इंटरनेट पर फिल्में है, तो इंटरनेट पर कोई भी फिल्में पुरानी नहीं होती है. आप दस साल पहले की फिल्म देखने जाओ तो वह भी आप उसी तरह की क्वालिटी में देख सकते हो. ये जो डिजिटल मीडिया जो आया है ना उसने ही फिल्मों का नयापन बरकरार रखा है.
बॉलीवुड को ऐसा क्या करना चाहिए जिससे उसकी पुरानी साख वापस आ जाए?
सबसे बड़ा कारण है कि बॉलीवुड अपनी कहानियों से बचती रही है. बॉलीवुड के साथ मुश्किल ये रही है कि उसने अपनी स्थानीयता को छोड़ दिया. उससे दूर होती गई. हिंदी सिनेमा को ये भ्रम था कि हमारी नेशनल पहचान होनी चाहिए. हम में मध्य प्रदेश भी दिखना चाहिए, हम में तमिलनाडु भी दिखना चाहिए. इस कोशिश में उसने जो उसकी अपनी बुनियादी कल्चर था, जो हिंदी समाज की संस्कृति थी, उससे वह दूर होती चली गई. आज जब भी कोई वैसी मूवी आती है अपने खास लोकल्स की बात कहते हुए फिर चाहे वह लापता लेडीज हो या फिर छावा हो. जिसमें की स्थान दिखता है आप रिलेट करते हैं कि ये महाराष्ट की कहानी है, ये उत्तर प्रदेश की कहानी है, ये बिहार की कहानी है. जैसे साउथ की फिल्में पूरे देशभर में रिलीज हो रही है उसका सबसे बड़ा एक कारण यह है कि वह अपनी स्थानीयता नहीं छोड़ती. हिंदी सिनेमा को अपनी स्थानीय पहचान में फिर लौटना पड़ेगा. स्थानीय कहानी ढूंढनी पड़ेगी, स्थानीय प्रेजेंटेशन बनाना होगा, तभी मुझे लगता है कि इसकी स्वीकृति हो सकेगी. ये दिख भी रहा है जब भी स्थानीय पहचान के साथ आती है, चाहे गैंग्स ऑफ वासेपुर ही क्यों ना हो. वह हिट रही है.
जानें किन फिल्मों ने री-रिलीज पर कितनी कमाई की
फिल्म का नाम | री-रिलीज फिल्मों का बॉक्स ऑफिस कलेक्शन |
तुम्बाड | 32 करोड़ रुपये |
लैला मंजनू | 8.50 करोड़ रुपये |
रॉकस्टार | 6 करोड़ रुपये |
कल हो ना हो | 5.80 करोड़ रुपये |
रहना है तेरे दिल में | 4 करोड़ रुपये |
वीर-जारा | 3.15 करोड़ रुपये |
जब वी मेट | 1 करोड़ रुपये |
ये जवानी है दीवानी | 1 करोड़ रुपये |
सनम तेरी कसम | 40 करोड़ रुपये |
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