फिल्म- द भूतनी
राइटर और डायरेक्टरः सिद्धांत सचदेव कास्टः संजय दत्त, मौनी रॉय, सनी सिंह, पलक तिवारी, निकुंज शर्मा, आसिफ खान और अन्य
ड्यूरेशनः 2 घंटे 10 मिनट
रेटिंग : 4/5
The Bhootnii Movie Review: जब डर और हंसी एक ही फ्रेम में दिखाई दें, तो सिनेमाघरों में रिएक्शन का मजा ही कुछ और होता है. ‘द भूतनी’ इसी कोशिश में आई है, एक देसी ट्विस्ट के साथ, जहां भूत भी दिल तोड़ते हैं और इश्क भी डराता है. कॉलेज का माहौल, वर्जिन ट्री की लोककथा, और एक अधूरी मोहब्बत का रहस्य, सबकुछ मिलाकर निर्देशक सिद्धांत सचदेव ने एक रंगीन लेकिन रहस्यमयी दुनिया खड़ी की है. सवाल बस इतना है, क्या ये फिल्म हंसाने के साथ-साथ आपको डराने में भी कामयाब होती है? आइये जानते हैं इस रिव्यू में.
क्या है द भूतनी की कहानी
कहानी की शुरुआत एक रहस्यमय वॉइस ओवर से होती है, जो एक यूनिवर्सिटी के ‘वर्जिन ट्री’ से मिलवाता है, एक ऐसा पेड़ जिसके बारे में माना जाता है कि जो भी सच्चे दिल से प्यार मांगे, उसकी दुआ कबूल होती है. हालांकि हर दुआ की एक कीमत होती है… और इस पेड़ के आसपास अतीत में कई रहस्यमयी मौतें हो चुकी हैं, जिससे इसकी छवि एक भूतिया जगह की बन गई है.
शांतनु कैसे मिलता है अपने प्यार से
वर्तमान में आता है शांतनु एक टूटे दिल वाला लड़का, जो अपनी उदासी और नशे में डूबा, उसी पेड़ से प्यार की मांग करता है. यहीं से उसकी जिंदगी में अजीब घटनाओं की झड़ी शुरू होती है, कभी कोई परछाईं उसका पीछा करती है, तो कभी अजीब आवाजें उसे डराती हैं. उसकी ज़िंदगी में पलक आती है, जो दोस्त बनती है लेकिन कुछ छुपा रही है और फिर आती है मौनी रॉय की एंट्री एक खूबसूरत लेकिन रहस्यमयी आत्मा, जो प्यार में है… लेकिन शायद सिर्फ प्यार नहीं, कुछ और भी चाहती है.
फिल्म देखने के बाद इन राज से उठेगा पर्दा
संजय दत्त की एंट्री धमाकेदार तरीके से होती है, जो इस रहस्य से जुड़े पुराने किस्सों को जानते हैं और आत्माओं से दो-दो हाथ करने में माहिर हैं. जैसे-जैसे होलिका दहन की तारीख करीब आती है, माहौल और भी डरावना होता जाता है. अब सवाल उठता है, क्या शांतनु की दुआ उसका अंत बन जाएगी? कौन है असली भूतनी? और क्या इस कहानी में सचमुच कोई सच्चा प्यार है या सिर्फ छलावा?
कैसी रही स्टार्स की परफॉर्मेंस
इस कहानी की जान हैं इसके किरदार, जो हर मोड़ पर इसे दिलचस्प बनाते हैं. सबसे पहले बात संजय दत्त की, जो ‘बाबा’ बनकर जैसे पूरी फिल्म को एक नया अंदाज देते हैं. उनका पैरानॉर्मल एक्सपर्ट वाला स्वैग, मजाकिया अंदाज और टशन से भरी डायलॉग डिलीवरी, उन्हें देखना एक अलग ही अनुभव बना देती है. वहीं सनी सिंह शांतनु के किरदार में एकदम नैचुरल लगे हैं जैसे टूटे दिल वाला, सच्चे प्यार की तलाश में भटका लड़का, जिसकी मासूमियत और इमोशनल ग्राफ उन्होंने बहुत सादगी से दिखाया है.
भूतनी में चमकी पलक तिवारी
पलक तिवारी अनन्या के किरदार में कम बोलकर भी बहुत कुछ कह जाती हैं. उनकी मौजूदगी में एक ठहराव और गहराई है, जो किरदार को और भी रहस्यमयी बनाता है. मौनी रॉय ‘मोहब्बत’ बनकर फिल्म में एक खास असर छोड़ती हैं, उनकी आंखों में छुपा दर्द, और उनका सॉफ्ट लेकिन इंटेंस अंदाज लंबे समय तक याद रह जाता है. वहीं, निकुंज शर्मा और आसिफ खान की जोड़ी कहानी में हल्कापन और हंसी लेकर आती है. उनकी कॉमिक टाइमिंग और आपसी ट्यूनिंग फिल्म की ग्रैविटी को बैलेंस करती है.
टेक्निकल ट्रीटमेंट
‘द भूतनी’ की कहानी जितनी दिलचस्प है, उसका टेक्निकल ट्रीटमेंट उतना ही असरदार. श्रेयस कृष्णा की सिनेमैटोग्राफी फिल्म को एक अलग ही वाइब देती है. हर फ्रेम में कुछ छुपा हुआ सा लगता है. कहीं धुंधली रातें हैं, कहीं रंगों की चमक, और इन सबके बीच एक रहस्य का पर्दा. विजुअल इफेक्ट्स जरूरत भर के हैं, जो डर बढ़ाते हैं लेकिन दिखावे में नहीं जाते. एडिटर बंटी नेगी ने कहानी को इस तरह सजाया है कि फिल्म की रफ्तार लगातार बनी रहती है और ना कोई एक्स्ट्रा सीन, ना ही ज़रूरत से ज़्यादा ठहराव हैं.
संगीत है कहानी की धड़कन
फिल्म का म्यूजिक सिर्फ बैकग्राउंड साउंड नहीं, बल्कि इसका इमोशनल और कल्चरल सेंस बढ़ाने वाला हिस्सा है. संतोष नारायणन के गाने ‘आया रे बाबा’ और ‘महाकाल’ सिचुएशन के साथ गहराई से जुड़ते हैं. बैकग्राउंड स्कोर कहानी को थामे रखता है, डर के पल हों या इमोशनल मोड़, संगीत सबमें अपने तरीके से मौजूद रहता है. वहीं डायलॉग्स आम ज़िंदगी की तरह लगते हैं. इसे 4 स्टार्स मिले हैं.
दिल से निकली कहानी, जो महसूस होती है
‘द भूतनी’ सिर्फ हॉरर-कॉमेडी नहीं है, ये उन अधूरी कहानियों की भी बात करती है जो वक्त और हालात में कहीं खो गईं. इसमें आत्मा से ज़्यादा आत्मीयता है जैसे रिश्तों की भूख, प्यार की प्यास और समझे जाने की चाहत. ये फिल्म त्योहारों की रौनक, कॉलेज की मस्ती और देसी तड़कों के बीच कुछ ऐसा कह जाती है, जो सीधा दिल तक पहुंचता है. डर और हंसी के इस तालमेल में एक सच्चाई भी छुपी है, जो इसे सिर्फ देखने लायक नहीं, बल्कि महसूस करने वाली फिल्म बना देती है.
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