आरा. जिले भर में काफी संख्या में डेरी फार्म खोले जा रहे हैं. लोग इस व्यवसाय के रूप में अपनाने लगे हैं. इससे लोगों को लाभ भी हो रहा है एवं दूध का सेवन करने वाले लोगों को भी लाभ हो रहा है. जीविका दीदियों द्वारा भी इसे रोजगार के रूप में अपनाया जा रहा है. ऐसे में यह आंदोलन के रूप में बनते जा रहा है. जीविका जीविका दीदियों द्वारा अपनायी जा रही है दुग्ध उत्पादन जीविका दीदियों का दूध उत्पादन की तरफ काफी रुझान बढ़ रहा है. कई गांव में इनके द्वारा मवेशियों का पालन किया जा रहा है एवं उससे दूध निकाल कर डेरी में दिया जा रहा है. उदवंतनगर प्रखंड में बड़ा डेरी का कारोबार शुरू किया गया है. इस कारण इसके आसपास के गांव की महिलाएं जो स्वयं सहायता समूह से जुड़ी हैं, डेरी में दूध पहुंचा रही हैं. इससे एक तरफ इन महिलाओं को रोजगार भी मिल रहा है. उनके परिवार में खुशहाली हो रही है. इनकी आर्थिक स्थिति सुदृढ़ हो रही है. इसी तरह लगभग सभी प्रखंडों में स्वयं सहायता समूह की महिलाएं इस रोजगार में जोर-शोर से लगी हुई है तथा आत्मनिर्भर बन रही हैं. कोईलवर प्रखंड के बहियारा में पूर्व राज्यसभा सांसद आरके सिन्हा द्वारा वृहद स्तर पर डेरी फार्म का संचालन किया जा रहा है. इस डेरी फार्म में भी काफी संख्या में स्वयं सहायता समूह की महिलाएं दुग्ध दे रही हैं. सुधा डेयरी की भी है महत्वपूर्ण भूमिका सुधा डेयरी द्वारा भी ऐसे लोगों को शिक्षित एवं उत्साहित किया जा रहा है. वहीं डेरी फार्म के लिए भी लोगों को शिक्षित एवं उत्साहित किया जा रहा है. सरकार द्वारा भी महत्वपूर्ण भूमिका निभायी जा रही है. मवेशियों की खरीदारी पर छूट दी जा रही है. अनुसूचित जाति जनजाति के अभ्यर्थियों को मवेशियों की खरीदारी पर 75% की छूट दी जा रही है. वहीं अन्य लोगों को 50% की छूट दी जा रही है. इससे पशुपालन के प्रति लोगों में जागरूकता बढ़ गयी है. इसके साथ ही डेरी फार्म के प्रति भी लोगों का रुझान बढ़ गया है. हर पंचायत में कम से कम दो से तीन हैं डेरी फार्म जिले के हर पंचायत में कम से कम दो से तीन डेरी फार्म हैं. कई जगह तो इससे भी अधिक डेरी फार्म है. जबकि लगभग 10 वर्ष पहले इनकी संख्या काफी कम थी. पर आत्मनिर्भरता को देखते हुए एवं रोजगार को देखते हुए लोगों ने इस रोजगार को काफी हद तक अपनाया है एवं अपना रहे हैं. जिले में 227 पंचायतें हैं. इस तरह कुल मिलाकर लगभग 500 के करीब डेरी फार्म हैं.
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