क्यों उठा पर्चा की सत्यता पर सवाल
कोर्ट में पेश किए गए इलाज के पर्चा पर किसी चिकित्सक का नाम अंकित नहीं था. अस्पताल का कोई रजिस्ट्रेशन नंबर दर्ज नहीं था. किस विभाग में दिखाया गया है यह भी अंकित नहीं था. मेडिकल पूर्जा पर दो रंग (ब्लू प्रथम पृष्ठ एवं काला पीछे वाले पृष्ठ पर) की कलम का प्रयोग किया गया था. बीमारी के नाम पर केवल “बैक पेन” अंकित था, जिससे पर्चा पर सवाल उठे हैं.
हाईकोर्ट के आदेश को भी किया जा रहा प्रभावित
अभियुक्तों का बयान पर धारा 313 के तहत दर्ज करने के लिए निर्धारित है. पिछली तिथि को दोनों अभियुक्तों को सदेह उपस्थित रहने का निर्देश कोर्ट ने दिया था. वाद लगभग पांच वर्ष पुराना है तथा उच्च न्यायालय पटना द्वारा शीघ्र विचारण करने का दिशा-निर्देश प्राप्त है. कोर्ट ने आशंका जताई कि दोनों अभियुक्त जान-बूझकर मामले को लंबित करना चाहते हैं. दोनों अभियुक्तों को न्यायहित में एक अंतिम अवसर देते हुए निर्देश दिया जाता है कि वे आगामी तिथि को सदेह उपस्थित रहें, अन्यथा बंधपत्र रद्द कर दिया जायेगा. अगली सुनवाई 20 मार्च को निर्धारित की गई है.
होली के दिन गांव में होने का अभियोजन का दावा
सोमवार को अटल पांडेय हत्याकांड में ट्रायल के दौरान एडीजे-10 की कोर्ट में अभियुक्त जितेंद्र पासवान उपस्थित हुए. अभियुक्त श्रीराम भगत की ओर से उनके अधिवक्ता ने अभियुक्त का एक मेडिकल इलाज संबंधी पर्चा दाखिल किया तथा समय की मांग की. अभियोजन पक्ष के अधिवक्ता ने कोर्ट को बताया कि दाखिल इलाज का पर्चा मिथ्या तथा कूटरचित है. अभियोजन पक्ष के अधिवक्ता जयराम साह ने मेडिकल इलाज के पूर्जा की विधिवत जांच कराने की अपील की.
यह है छात्र अटल पांडेय हत्याकांड
विजयीपुर थाने के कोरेया गांव में 2 दिसंबर 2021 को भूमि विवाद में संजय पांडेय, सिंटू पांडेय, जगदंबा पांडेय ने लखनऊ में पढ़ रहे छात्र अटल पांडेय पर चाकू से जानलेवा हमला कर गंभीर रूप से घायल कर दिया था. अभियुक्तों ने 16 वर्षीय किशोर अटल पांडेय, जो अपने पिता का इकलौता पुत्र था, की संपत्ति के लालच में हत्या की. इसके साथ ही, मृतक अटल पांडेय को बचाने गए अन्य व्यक्तियों पर भी जानलेवा हमला किया गया. इसमें संजय पांडेय, सिंटू पांडेय और जगदंबा पांडेय को भी जान से मारने की नीयत से उनके शरीर के मर्म स्थलों पर घातक हथियार से प्रहार किया गया.
एक्सपर्ट की भी सुनें
- भारत सरकार के स्थायी विधि सलाहकार मनीष किशोर नारायण ने बताया कि कोर्ट में यदि कोई झूठा दस्तावेज, साक्ष्य या गवाही देता है तो उस पर कोर्ट तत्काल केस दर्ज कराएगा. साबित होने पर धारा 193 के तहत सात साल तक की सजा हो सकती है.
- जिला विधिज्ञ संघ अध्यक्ष धीरेंद्र कुमार मिश्र उर्फ मुन्ना मिश्र ने बताया कि कोर्ट को झूठा साक्ष्य देकर भ्रमित करने और ट्रायल को प्रभावित करने के मामले में कोर्ट तत्काल ऐसे व्यक्ति पर प्राथमिकी दर्ज कराएगी. हत्या कांड जिसमें मृत्युदंड की सजा हो सकती है, ऐसे मामलों में सात साल से 10 साल तक की सजा का प्रावधान है.
Also Read: लैंड फॉर जॉब: सैकड़ों समर्थकों के साथ ईडी दफ्तर पहुंचे लालू यादव, जांच एजेंसी ने कई घंटों तक पूछे सवाल